इंसानी परस्ती और इंसानी मोहब्बत
मोहब्बत सबसे ज्यादा उल्लेख किया जाने वाला मामला तो है यह अहमियत का हामिल मसला भी है। असल में मोहब्बत हमारे इमान का फूल है। यह दिल की ऐसी रियासत है जो कभी इधर उधर नहीं होता। जो न ही खुदा ए बुजुर्ग व बेहतर ब्रह्माण्ड को मोहब्बत की खड्डी पर एक तार की तरह चलाता है तो सबसे ज्यादा जादूभरी और दिलचस्प संगीत जो मौजूदात के सीने पर पैदा होती है। सब से मजबूत रिश्ता जो लोगों को कुंबे, समाज और कौम बनाता है वह मोहब्बत ही है। दुनियावी मोहब्बत ब्रमाण्ड की प्रणाली में हर तरफ इस तरह से नजर आती है कि उस का हर घटर दूसरे घटक के साथ मिल कर उसकर समर्थन करता है।
यह इस हद तक ठीक है मौजूदात की आत्मा में सबसे ज्यादा अमल में आने वाली मोहब्बत है। ब्रह्माण्ड की चैकी का व्यक्ति होने की स्थित से लगभग हर प्राणी जादुई आवाज के साथ जो खुदा ने उसको मोहब्बत के गीतों में अता की है अपने अंदाज से काम करती और विशेष प्रताव अपनाती है। मौजूदात से मानवता और एक प्राणी से दूसरे प्राणी को आपस में मोहब्बत को विनिमय उनकी अपनी मर्जी से मावरा होता है इस लिए कि मंशा इजदी उन पर मुकम्मल तौर पर मुहीत होती है।
इस दशा में इंसानियत “सोचे समझे तरीके से” मोहब्बत का सदभाव जो मौजूदात में कार्यरत है में शामिल होती है। अपनी प्रकृति में मोहब्बत को पैदा करके इंसान यह जानने की कोशिश करते हैं कि किस तरह वह इंसानी तरीके से प्रदर्शन करें। इस लिए अपनी आत्मा में मोहब्बत के गलत प्रयोग से और अपनी ही प्रकृति से मोहब्बत लाने के लिए हर व्यक्ति को चाहिए कि दूसरों की वास्तविक मदद और सहयोग करे। इसी प्रकृति विधियां और वह विधियां जो मानव जीवन को चलाने के लिए बनाये गये हैं। उनका ध्यान रखते हुए सामान्य सदभाव बनाए रखना चाहिए जो मौजूदात में वदिअत की गयी है।
इंसान परस्ती, मोहब्बत और मानवता को एक व्यापक सिद्धांत है। जो आजकल असंवैधानिक तरीके से अपनाया जा रहा है हालांकि इसमें विभिन्न व्याख्याओं के जरिये सहूलियत के साथ तरीके से काम किए जाने की पराजय भी है। कुछ क्षेत्रीय लोगों को जिहाद, इस्लाम और उनके दिलों में संदेह पैदा करके इंसान परस्ती की असंतुलित और अस्पष्ट सूरत दिखाने की कोशिश करते हैं। उन लोगों के जो दहशतगर्दी पैदा करके किसी मुल्क के इत्तेहाद को टुकड़े टुकड़े करना चाहते हों या जो लोग सदियों पर मुहीत किसी कौम की कल्याण की कार्यवाहियों को खत्म करने के लिए बेरहमी से लोगों को कत्ल करते हो या उन लोगों के लिए जो इस्लामी अकदार के नाम पर ऐसी कारवाहियां करते हों या उन लोगों के लिए जो इस्लाम हमलों की इजाजत देने वाला मजहब बताते हो उन लोगों को देखते हुए इंसानियत परस्ती के साथ “रहम और तरस” के अजीब रवैये का जोड़ना मुश्किल हो जाता है।
हर मोमिन को सच बोलने और कहने में पैगम्बरे खुदा की इत्तेबा करनी चाहिए उन्हें दोनों जहां में कामयाबी और खुशी हासिल करने के सिद्धांत दूसरों को बताना तर्क नहीं करने चाहिए। सहाबा (रजि.) जो बहैसियत मजमूयी उस हक की जीती जागती मिसाल थे कि पैगम्बर (सल्लल्लाह अलैह वसल्लम) उन में पैदा किया था वह हर तरह मामले में तवाजुन और मियांना रवी की नजीर बन गये।
सहाबा (रजि.) के बाद पैदा होने वाले भाग्यवान लोगों में से कुछ खास व्यक्तियों ने एक बार खलीफा से जाकर यह भी स्पष्ट पूछा कि बिना इरादे से घास की टुड्डी को पाँव से कुचल दिया तो क्या उसकी सजा है? जब हम मस्जिदों दिवारों और मीनारों पर नजर डालते है तो हमें छोटे छोटे छेद नजर आते हैं जो पक्षियों के घोंसलों के लिए बनाये गये हैं तो हमे अपने पूर्वजों के मोहब्बत के गहरे इजहार का पता चलता है। तारीख इस तरह के रहम दिल वालों के कारनामों से भरी पड़ी है। ऐसे काम जिन से पक्षियों और मानव ने एक ही समय में लाभ उठाया।
इस्लाम के आलमी सिद्धांत के ढांचे में मोहब्बत का नजरिया और विचार बडे ही संतुलित है। जालिमों और जाबिरों ने हमेशा इस मोहब्बत का इंकार किया। इस लिए जब भी उनको मोहब्बत और रहमदिली दिखायी जाती है उससे वह जुल्म और जब्र में और बढ़ जाते हैं और इससे उन को दूसरे के अधिकारों को बर्बाद करने की और बढ़त मिलती है इस लिए उन लोगों के लिए दयालुता का इजहार नहीं होना चाहिए जो आलमी मोहब्बत के लिए खतरा हों। किसी जाबिर के साथ रहमदिली को इजहार असल में मकहूरीन के साथ बहुत बड़ी ज्यादती है। अलबत्ता हमें उन लोगों के साथ रहमदिली करनी चाहिए जिनको अपने किये पर पक्षतावा है। आप (सल्लल्लाह अलैह वसल्लम) का फरमान हैः
“अपने भाई की मदद करो चाहे वह जालिम हो या मजलूम। तुम जालिम की इस तरह मदद कर सकते हो कि उसको दूसरों पर जुल्म करने से रोक दो”
इस संशय भरे जमाने में जब हमारे दिलों में दुश्मनियां पैदा हो चुकी है जब हमारे जमीर मुर्दा हो चुके है जहां नफरत व अदावत अपने चरम पर है तो बिल्कुल स्पष्ट है कि हमें मोहब्बत और रहमदिली की इतनी ही जरूरत है जितनी पानी और हवा की। ऐसा लगता है हम मोहब्बत भुला चुके है और उससे बढ़ कर सफकत और करम ऐसा शब्द है जो खाल खाल नजर आता है। हमारे अंदर न ही अपने लिए रहमदिली है न ही दूसरों के लिए मोहब्बत है। हमारे अंदर नरमी का एहसास खत्म होता जा रहा है हमारे दिल कठोर हो चुके हैं। और हमारे चारों तरफ दुश्मनी के काले बादलों ने ढक रखा है। हम में से अक्सर लोग जंग करने के बहाने और तरह तरह के झूठों के जरिये दूसरों को बदनाम करने के तरीके ढूँतते हैं और हम अपने आप को जिंदान, पंजा और ऐसे शब्दों से याद करते हैं जो खून को खौला देते हैं।
यह व्यक्तियों के बीच मध्य खतरनाक किस्म की भेदभाव है हम अपने वाक्यों को “हम”, “तुम” “दूसरे” से शुरू करते हैं। हमारी नफरत कभी खत्म नहीं होती। हम अपनी सफें मतला देने वाले तरीके से खत्म करते हैं और कहते हैं कि हम जारी रखेगें लेकिन फिर भी ऐसे एहसासात बनाए रखते हैं जो भविष्य में मतभेदों को जन्म देते हैं हम एक दूसरे से अलग रहते हैं और जुदाई और दुरी हमारे अमल से जाहिर होती है। हम कटी हुई माला की तरह इधर उधर बिखरे हुए हैं हम गैर मुस्लिमों से ज्यादा एक दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं।
वास्तव में हमने अपने खुदा को भुला दिया है। जिस के नतीजे में उसने हमें बिखेर दिया है। चूंकि हमने इस पर इमान और मोहब्बत को छोड़ दिया है इसलिए उसने हमारे दिलों से मोहब्बत का एहसास छीन लिया है। हम अपने आगोश की गहरी खायीं में जो कुछ कर रहे हैं और जहां उस की ख्वाहिश में शामिल हैं यह सब उसी की कम अकली पर आधारित “मैं”, “तुम” और दूसरे को “शिद्दतपसंद” (चरमपंथी) और काफिर उजड का लेबल लगाने और एक दूसरे की टांगे खींचने का नतीजा है। यही वजह है कि हम पर गजब हुआ है जिस से कि हम मोहब्बत करने और किये जाने से वंचित हो गये हैं। और हम करम और सफकत को घुन लगा रहे हैं। हम इससे प्यार नहीं करते तो उसने हमसे प्यार छीन लिया। पता नहीं उसमें कितना समय लगे? लेकिन वास्तविकता यह है कि जब तक हक उसकी तरफ ध्यान मग्न हो कर उससे मोहब्बत नहीं करेंगे वह हमारी आपस की मोहब्बत हमे अता नही करेगा। वह राहें जिन पर हम चल रहे हैं वह उस तक बिल्कुल नहीं पहुंचाती। उसके विपरीत यह परिस्थिति हमें उससे दूर ले जा रही हैं वह नफूस जो इसकी मोहब्बत की नहरों के स्रोत थे आज बिल्कुल विरान हैं। हमारे दिल रेगिस्तान की तरह हैं। हमारे अंदर की दुनिया में गार बन चुके हैं जैसे जानवरों के कछार होते हैं उन सब नकारात्मक बातों का इलाज सिर्फ और सिर्फ खुदा की मोहब्बत है खुदा की मोहब्बत हर चीज की बुनियाद है और तमाम मोहब्बतों के लिए शुद्ध स्रोत है। इंसानी रिश्ते सिर्फ उसी वक्त बनेगें जब उससे हमारा रिश्ता इस्तेवार होगा। खुदा की मोहब्बत हमारा इमान, यकीन जिस्म में प्रवेश आत्मा की तरह है। उसने हमे जीना सिखाया अगर आज हम जिंदा हैं तो सिर्फ उसी वजह से जिंदा है। हर वजूद की बुनियाद उसकी मोहब्बत है और आखिर में खुदा की इलाही मोहब्बत के जरिये जन्नत अता होगी। जो कुछ उसने पैदा किया है वह मोहब्बत पर आधारित है। और उसने इंसान के अपने साथ संबंध को महबूब होने के मुकद्दस जज्बे में रख दिया है।
मोहब्बत की इजहार की जगह नफ्स है हम उसको जिस दिशा में मोड़े यह हमेशा खुदा की तरफ जाती हैं। सही दिशा न होना और विविधता में घुम हो जाना जैसी मुश्किलात सिर्फ हमारी अपनी पैदावार हैं। अगर हम चीजों की मोहब्बत को खुदा से मंसूब कर लें। और उस तरह हम स्वयं के साथ और माबूद बनाने से भी बच जाएंगे। फिर हम अपनी मोहब्बत ओर मौजूदात से तअल्लुकात के साथ उनकी तरह रहेगे जो सही रास्ते पर आगे बढ़ते हैं।
मूर्ति पूजने वालों ने मूर्तियों की पूजा इसलिए की कि उनके पूर्वज मूर्तियों को पूजते थे इसके मुकाबिल खुदा की इबादत और उसकी मोहब्बत इसलिए की जाती हैं कि वह खुदा है। उसकी अजमत और बड़ाई हमसे चाहती है कि हम उसके गुलाम बनें। हम उसकी इबादत करने की कोशिश इसलिए करते हैं कि हम उससे अपना इजहारे मोहब्बत कर सकें, अपनी सफलताओं पर उस का शुक्र अता कर सकें और अपने प्यार को शब्दों का जामा पहनाकर उसको पेश कर सकें और उससे अपना तअल्लुक और वास्ता का इजहार कर सकें।
दुनियावी ऐतबार से जाहिरी विशेषताएं जैसे खुबसूरती, कमाल, शक्ल, जाहिरी वजूद, अजमत, शोहरत, ताकत, उहदा, बढ़ोतरी, खानदान और नस्ल आदि को देख कर मोहब्बत की जाती है। कभी लोग खुदा के साथ दूसरों को सामिल करने की गलती कर लेते हैं। उस कि वजह उन जिक्र कर्दा चीजों से उन की कसरत मोहब्बत और संबंध होता है उसी लिए दुनियां में मूर्ति पूजा भी मौजूद है उसी तरह के लोग सामान्यतः जाहिरी या जिस्मानी खूबसूरती और अदावत के शौकीन होते हैं। वह कमाल की तारीफ करते हैं और अजमत और अजमत और जाहिरी शक्ल के सामने जुक जाते हैं। अपनी इंसानियत और आजादी को दौलत और ताकत के हुसूल के लिए कुरबान कर देते हैं और उहदा और जाहोजलाल की लालच में आपने आप को गुम कर देते हैं इस तरह अपनी मुहब्बत व उल्फत को बहुत सी प्राणियों में विभाजन करके न सिर्फ अपने जज्बात को जो सिर्फ माबूद बरहक और शान वाले खुदा के होने चाहिए बर्बाद कर देते हैं और मोहब्बत के दोनों तरफ से मेल न होने या अपने माबूदों में लचक या इमान के कबूल करने की रमक न देखने की वजह से वह बार बार मौत को मजा चखते रहते हैं।
दूसरी तरफ जहां इमान वालों का संबंध है वह तो इब्तेदायी तौर पर अपने खुदा से मोहब्बत करते हैं और उस मोहब्बत की वजह से दूसरों के साथ उलफत का मजा पाते हैं वह सिर्फ माबूद वाहिद की रहमत के हुसूल की खातिर दूसरे लोगों और चीजों से प्यार करते हैं और स्वंय की नियाबत में अपनी उलफत का इजहार बाकी चीजों से करते हैं। वास्तव में खुदा को बीच में लाये बगैर चीजों की मोहब्बत बेकार, बेफायदा, गैर यकीनी और बे सबब है। एक मुसलमान को बाकी हर चीज से बढ़ कर खुदा से प्यार करना चाहिए और दूसरों का सिर्फ इसलिए पसंद करे कि वह सब उस के इलाही स्मा और सिफात का रंगीन इजहार और शक्लें हैं। उसी तरह उसी तरह लोगों को चाहिए। कि उन चीजों की तारीफ करके उन्हें उजागर करें और जब भी कोई ऐसी चीज नजर आए उन्हें सोचना चाहिए कि “यह भी तुम्हारी तरफ ही से है” और अपने महबूब के साथ एकजुट होने का तसव्वुर करना चाहिए। इस काम के लिए हमें नेक और मुत्तकी लोगों की जरूरत है जो लोगों के सामने खुदा की आयात बढ़ कर सुना सकें। बेशक उन लोगों के लिए विचार करें हर प्राणी एक चमकता दर्पण है। और सबसे बड़ी निशानी है जो आयात में नजर आती है वह इंसान को चेहरा है जो उस की रहमत का नमूना है।
और अहकमुलहाकीमीन ने तुम्हें अपना कर आईना बनाया है।
ऐसा दर्पण जो उसकी अद्वितीय जात को नुमायां करतो है। (हक्कानीः4)
यह पंक्ति कितनी महत्वपूर्ण है जो कि न सिर्फ हमें हमारा रूतबा बताता है बल्कि हकीकत भी जाहिर करता है अगर इंसान एक छुपी हुई सुंदरता का जादुई चेहरा है जो बिला शक है तो उसे अपने दिल की आँख खोल कर उस की तरफ ध्यान मग्न होना चाहिए और उसकी तरफ से ठंडी ठंडी हवाओं के झोंकों का प्रतीक्षा करनी चाहिए जो उस मोहब्बत के समंदर की गहराई में ले जा सके।
उसी तरह उसको खुश करने के लिए और उसकी इनायत के हुसूल के लिए इंसान को उस तरफ ले जाने वाली शाहेराहों पर पहुंचाने वाले हर साधन को उपयोग में लाना चाहिए। छिपे खजाने के ताले में लगी कुंजी की तरह इंसान को दिल हर समय बेचैन रहना चाहिए। अगर मोहब्बत सुलेमान (अलैह वस्सलाम) हो और दिल तख्ते सुलेमानी हो तो क्या कहना व्यर्थ न होगा कि एक न एक दिन मोहब्बत का बादशाह अपने तख्त पर जरूर पहुंचेगा।
जब मुसलमान तख्त पर पहुंच जाता है या दूसरे शब्दों में मोहब्बत और दिल का मिलन होता है तो लोग उस (खुदा) को पा लेते हैं बातिन में उससे बात करते हैं और जब पानी पीते हैं, भोजन करते हैं और सांस लेते हैं तो उसकी रहमत का मजा चकते हैं उसी तरह उसके स्पर्श की गरमाईश अपने हर अमल में पाते हैं। अपने हर अमल में पाते हैं कुरबत की मौजें और मोहब्बत भरा संबंध गहरा हो जाता है। और उनके दिल ऐसे जलने लगते है जैसे आग पर रख दिये गये हों। कभी कभी तो वह उस मोहब्बत की आग मंे जल भी जाते हैं। लेकिन फिर भी न उकताते न अपनी बेचैनी से दूसरे को परेशान करते है बल्कि ऐसे लोग इस तरह की स्थिति को खुदा की तरफ से अता ए रब्बानी समझते हैं वह उस चिमनी की तरह जलते हैं जो न धुआं दे और न शोले। वह अपनी शुद्धता की तरह अपनी खुशी और मोहब्बत की भी हिफाजत करते हैं लेकिन इसका इजहार किसी पर नहीं होने देते।
यह रास्ता सबके लिए खुला है लेकिन यह जरूरी है कि मुखलिस और पुर अजम हो। जब ईमान वाले खुदा की यह सारी खूबसूरती, कमाल, अजमत और कामिलियत का जाहिर होता देखते हैं तो वह पूरे शौक, मोहब्बत और प्यार के साथ जो उन स्रोतों से हासिल होता है उसकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं और खुदा से ऐसा प्यार करने लगे हैं जो उसकी शान के शायां हो। यह मोहब्बत अगर जज्बाती न हो, तो खुदा के लिए होती है और इंसानी मोहब्बत और ख्वाहिश का एकसां तरीके से इजहार होती है। आखिरकार उस दिल में जो सामानता तक सीमित होता है जो इस्लामी सिद्धांतों पर निर्भर होता है उससे किसी किस्म का विचलन नहीं होता। न उसकी मोहब्बत में कोई विषमता आती है। इमान वाले खुदा से प्यार करते हैं इसलिए कि वह खुदा है और उनकी खुदा से मोहब्बत किसी दुनियावी या गैर दुनियावी चीज की वजह से नहीं होती। वह लोग खुदा के साथ अपनी मौसलाधान मोहब्बत और खुदा के लिए अपनी ख्वाहिश का झरने को कुरआन और फख्रे कायनात (मुहम्मदः सल्लल्लाह अलैह वसल्लम) की अहादीश की कसौटी पर परखते हैं। यह लोग उन दोनों चीजों को अपने रास्ते की रूकावट के तौर पर भी प्रयोग करते हैं यहां तक कि कभी कभी ज बवह मोहब्बत की आग में पूर्णतः जल जाते हैं लेकिन फिर भी वह सही तरीके से और मुंसिफाना तौर पर काम करते हैं। उनकी अवधारणायें उनकी खुदा के साथ मोहब्बत में हस्तक्षेप नहीं करते। बल्कि उसे मालिक हकीकी और हर चीज का मुहाफिज समझते हुए जो कि अपने अच्छे नामों और विशेषताओं के साथ मशहूर है वह खुदा के साथ साफ, मुकद्दस और मोहब्बत भरा प्यार करते हैं।
हर चीज से पहले और बाद मोमिनीन सब चीजों से ज्यादा खुदा से प्यार करते हैं जो उन को महबूब हकीकी, मतलूब हकीकी और माबूद हकीकी है। वह खुदा के तालिब हैं और अपने मुम्किना अमल से वह पुकार उठते हैं कि वह खुदा के बंदे हैं। उसके हुसूल के लिए वह सबसे पहले मुहम्मद (सल्लल्लाह अलैह वसल्लम) फख्रे इंसानियत से प्यार करते है जो अंबिया की आत्मा थे। जो खुदा के वफादार बंदे खुदा की जात, स्मा और सिफात के सही तर्जुमान, खातमुलनबी और अंबिया की रूह थे और उसके बाद वह काबी तमाम अंबिया ओर औलिया सालिहीन से भी मोहब्बत करते है जो हकीकी नायब और शफाफ आईना और खुदा के आदर्श बंदे थे जो मकासिद इलाहिया और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति में विचार करने वालों के वार्यवाहक और जिम्मेदार थे। इसके बाद वह नौजवानों से जो इंसानियत के लिए खुदा की तरफ से अता कर्दा भेंट कर्ज हैं से प्यार करते हैं ताकि वह बेहतर तरीके से उस फानी दुनिया को समझ और अंदाजा लगा सकें। इसके बाद वह उस दुनिया से प्यार करते हैं इसलिए कि यह दूसरे सल्तनत का काबिले काश्त खेत हैं। और साथ खुदा के स्मा ए हुस्ना का नमूना है। फिर वह अपने माता-पिता से प्यार करते है इस लिए कि वह मोहब्बत करते हैं और अनस के हीरो होते हुए अपने बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाते हैं। और आखिर में वह बच्चों से मोहब्बत करते हैं इसलिए कि वह ईमानदारी के साथ अपने माता-पिता की सुरक्षा करते हैं और उनके साथ बिना किसी परेशानी के लगाव भी रखते हैं यह सब कुछ खुदा के साथ दिली मोहब्बत और उस की रजा के लिए प्यार की निशानी हैं।
गैर मुस्लिम लोगों से उसी तरह का प्यार करते हैं जो खुदा के साथ होता है जबकि मुस्लिम लोगों से खुदा की वजह से प्यार करते हैं उन दोनों में अंतर है। उस तरह किसी निर्धारित बर इलाही मोहब्बत जो इमान व इबादात से हासिल होती है सच्चे मुसलमानों के लिए अद्वितीय चीज है। जबकि दूसरी तरफ जिस्मानी मोहब्बत जो अवारापन और खब्स बातिन पर आधारित होती है वह गुनाह और इंसान के अंदर छुपी अहवेलना का नतीजा है। खुदा की मोहब्बत और इसका इजहार उस मुकद्स रकीक दो की तरह है जिसे फरिश्ते भी पीने की तमन्ना करें। अगर मोहब्बत इतनी बढ़ जाए कि आशिक हर चीज महबूब के लिए कुरबान करे। चाहिए मादी हो या रूहानी। अपने लिए कुछ भी न छोड़े तो फिर सिर्फ महबूत को दिल में तसव्वुर ही रह जाती है। दिल उस तसव्वुर से परिपूर्ण हो जाता है और उसी के साथ धड़कता है और आँखें उस मोहब्बत का इजहार आँसूओं से करती हैं। दिल अपनी ठंडक के लिए आँख से अपना राज और दुखड़ा सुनाने के लिए कहता है। अंदर से रोने और खून बहाने की कोशिश करता है और दूसरों से अपना दर्द छुपाये उस तरह गोया होता है।
अगर मोहब्बत का दावा है तो उसके दर्द पर उदास न हो।
मुहब्बत की उनकी तकालीफ से कोई तुझ पर आगाह न हो (न मालूम)
असल में मोहब्बत बादशाह है और दिल तख्त है और उम्मीद की अबा और मुसल्ली पर बैठ कर तंहाई के आलिम में निकली आहें उस बादशाह की आवाजें हैं। तंहाई के आलम की सिस्कियों और आहों के संबंधित जो खुदा तक पहुंचने के लिए लांचंगपैड की हैसियत रखते हैं किसी को ज्ञान भी न होने देना चाहिए इसलिए कि जो उसकी हकीकत से अपरिचित है वह उस का ठठ करेगें। अगर यह मोहब्बत उस वहद ला शरीक के लिए है तो फिर उसे सब से ज्यादा गुप्त जगह रखना चाहिए ताकि वह अपने घोंसले से उड़कर कहीं और न चली जाए।
आज के मोहब्बत के दावेदार गैर हकीकी मोहब्बत का ढिंढोरा हर तरफ पीटते पागलों की तरह इधर नजर आते हैं। खुदा के आशिक तो सच्चे और खामोश होते हैं। खुदा के चैखट पर पर माथा झुकाये वह अपना मुद्दआ सिर्फ उसी के सामने बयान करते हैं। वह गाहे गाहे मदहोश भी होते हैं लेकिन अपना राज किसी को नहीं बताते। वह अपने हाथों और पांवों, अपनी आँखों और कानों, अपनी जबानों और होठों से सिर्फ खुदा की हुजूरी करते हैं और उसकी विशेषता की बलंदियों में सीरीं करे हैं। वह वजूद के नूर में घुलकर ऐसे फना होते हैं जैसे मोहब्बत को जनाजह निकल रहा हो। ज्यों ज्यों वह खुदा को महसूस करते है वह सोजीदा होकर पुकारते हैं “कुछ और भी” बावजूद कि मोहब्बत करने वाले और मोहब्बत किये हुए भी होते है लेकिन फिर भी संतुष्ट नहीं होते और “कुछ और भी” ही दुहराते रहते हैं। और चूंकि वह लगातार कुछ और मांगते रहते हैं तो महबूत बरहक उनसे हिजाबात उठाते हैं और उन को ऐसी सूझ व अंर्तदृष्टि भेंट करते है जो पहले कभी न देखी गयी हो और अंगिनत राज उन को अल्का होते हैं। कुछ दिनों के बाद जब वह अपने महबूब और अपने मुद्दआ को महसूस करने लग जाते हैं तो वह उनका हैं वह जो चीज भी देखते हैं उस में उन्हें खुदा की खूबसूरती नजर आती है। ऐसा समय आता है कि वह अपनी ताकत को बिल्कुल भुलाकर एक खुदा की रजा को पूर करने के लिए अपनी कुवतों को उससे जोड़ देते हैं और उसके अजीम रूतबे को अपना मोहब्बत करने और किये जाने और इल्म और मालूम के तज्जिया करते हैं। उस की इत्तेबा ओर वफादारी में वह अपनी मोहब्बत का इज्जार करते हैं। वह अपने दिल को ताले पे ताला लगाते हैं कि कोई गैर कभी उस मुकद्दस घर में दाखिल होने को सोच भी नहीं सकता। वह अपने पूरे वजूद के साथ खुदा का प्रतिबिंब होते हैं और उन का खुदा की शना करना समझ से भी बालातर होता है।
खुदा के साथ उस दर्जा की वफादारी का जवाब का उनके इमान के मुताबिक बहुत पुख्ता और यकीनी होता है। खुदा के यहां उनका मकाम खुदा और उनके दिलों से बिलमुशाफा मुताबिकत रखता हैं उसी लिए वह उस के हुजूर सही बन कर रहना और जाना चाहते हैं। जब वह उससे गहरी मोहब्बत करते हैं तो वह यह नहीं समझते कि उन्होंने खुदा को कुछ दिया है न वह चाहते हैं कि उसके बदले खुदा उन्हें कुछ दे। राबिया अदविया ने उसी लिए कहा था “मैं आप की अलूशान की कसम खाती हों कि मैंने तुम्हारी इबादत उस लिए नहीं कि तो मुझे जन्नत देगा बल्कि मैं तो सिर्फ तुम से मोहब्बत करती हों और अपनी बंदगी का तुझ से इजहार करती हों“ उस तरह वह उसकी जात की तरफ इंतेहाई मोहब्बत के आलम में चलते हुए अपने जहन में उसकी रहमत और महरबानी का तसव्वुर भी साथ रखते हैं। वह हमेशा अपने दिल के साथ उसके करीब होने की कोशिश करते हैं और अपनी समझ व सोच के साथ उसके इलाही नामों के आईने में एक हकीकत पाते हैं। वह हर चीज में मोहब्बत की आवाज पाते हैं और हर फूल की खुशबू से नौमी की कैफियत में मुबतिला होते हैं और खूबसूरती के हर मंजर को उसके जमाल को प्रतिबिंब समझते हैं जो कुछ वह सुनते, महसूस करते या सोचते है उसे सिर्फ उसकी खातिर मोहब्बत समझते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि वह पूरी मौजूदात को मोहब्बत का इजहार समझते हैं। और उसे मोहब्बत के सुर के तौर पर सुनते हैं।
जब दिल मोहब्बत की वादी में डेरा डाले होता है तो विपरीत चीजें भी एक जैसी लगने लगती हैं अमन, बदअमनी, रहमत, मुसीबत, गर्म, मीठा, राहत, बेचैनी, दुख सुख इन सब की एक जैसी आवाज और शक्ल लगना शुरू हो जाती हैं। दरअसल मोहब्बत वाले दिल के लिए मुसीबत से अलग चीज नहीं उनके नजदीक मुसीबत भी एक इलाज है इसलिए वह दर्द और गम को भी जन्नत की नहर से आया हुआ समझ कर नौश कर लेते हैं वक्त और हालात चाहे कितने ही बेरहम हो जाएं वह वफा शियारी के एहसासात के साथ अपनी जगह कायम रहते हैं। वह अपनी निगाहें दरे मोहब्बत के खुलने के इंतेजार में लगाये विभिन्न दिशाओं में भी खुदा की मेहरबानी के इजहार में इंतेजार करते रहते हैं। वह खुदा की मोहब्बत को इस की इत्तबा करके ताज पहनाते रहते हैं। उनके दिल तसलीम व रजा से धड़कते हैं और महबूब की नाराजगी के खौफ से दहल जाते हैं वह गिरने से बचने के लिए हैरानकुन तौर पर खुदा के अद्वितीय भरोसे और मदद की आगोश में शरण लेते हैं। खुदा की रजा से हमआहंगी उनकी यह तलब उनको दुनिया और आखिरत दोनो में हर एक की निगाह में इज्जत बना देती है। उनके तसव्वुर में खुदा के सिवा कुछ नहीं होता। उनके नजदीक किसी चीज मुआवजा लेना एक तरह का धोका है लेकिन फिर भी वह उस अदब के खिलाफ समझते हैं कि उस रहमत को कबूल न करें जिस के वह सजावार थे। वह उन मेहरबानियों को कदर की निगाह से देखते हैं लेकिन एहतियातन वह यह भी पुकार उठते हैं “ये अल्लाह! मैं उन चीजों की तरफ रगबत हो जाने से तेरी पनाह मांगता हूं।
एक सच्चे आशिक के लिए पुरजोश आरजू एक इंतेहाई आला दर्जा है और महबूब की रजा में अपने आप को गुम कर देना ऐसी कामयाबी है जिसका हुसूल मुश्किल तरीन है। मोहब्बत की बुनियाद कुछ प्रारंभिक सिद्धांतो जैसे तौबा, एहतियात और सब्र पर है। लेकिन उस में पड़ जाते हैं तो फिर खुद तमलुकी, वाकिफियत, मोहब्बत, और आरजू जिसे अहम सिद्धांत उस दर्जा को कायम रखने के लिए जरूरी होते हैं। मोहब्बत की राह का पहला पाठ साफाई है कि अपनी स्वंय की ख्वाहिशों को कुर्बान कर दिया जाए। अपने तमाम विचारों को उसकी से जोड़ दिया जाए। उन चीजों में शामिल हो जाए जो उसकी तरफ रहनुमायी करें उसकी रहमत के जहूर का तीव्रता से प्रतीक्षा करना चाहिए। और जब वह आप की तरफ केन्द्रित हो जाए तो जिंदगी भर अपनी उस स्थिति पर कायम रहना चाहिए। उस राह में मोहब्बह जुनून की हद तक होती है। गर्मजोशी इंतेहायी जज्बे और मरगूबियत का नाम है जब गर्मजोशी इंसान की हकीकी फितरत बन जाती है तो यह बेहद परशोक होती है। आशिक के हर अमल के साथ रजा सामिल होती है। खुद तमलकी उसके वजूद या उसकी जात के बिलमुसाफा के तहत असर होने के एहसासात व अदराकात के नशे में मामूर होने के मुकाबले में खबरदार हुए जाने के नाम है।
लोग जितना ज्यादा उन जिक्रकर्दा विशेषताओं को अपने अंदर तरक्की देते हैं उनता ही ज्यादा उनके रवैये में परिवर्तन नजर आती हैं। बाज समय वह पुरसुकूल किनारे ढूँढने हैं ताकि वहां उस जात से राजोनियाज कर सकें। कभी वह अलग हालात के असर के तहत उससे बात भी करते हैं और उससे जुदाई का गम भी बताते हैं वह वसल की उम्मीद से खुशी से झूम जाते हैं और आँसुओं से रूहानी सूकून महसूस करते हैं बार बार ऐसा होता है कि वह अपने आसपास से बे खबर हो जाते हैं इसलिए कि वह उसका मजा चक रहे होते हैं और कभी वह सकीना में इस कदर डूब जाते हैं कि उन को अपनी आवाज भी सुनाई नहीं देती।
मोहब्बत हिकमत व अंतर्दृष्टि की आगोश में जन्म और परवान चढ़ती है जो लोग हिकमत खाली होते हैं। वह मोहब्बत नहीं कर सकते और जिन का इदराक कमजोर हो वह भी अंतर्दृष्टि तक नहीं पहुंच सकते। कभी कभी खुदा खुद भी मोहब्बत को दिलों में पैदा कर के आंतरिक प्रणाली चलाते हैं इससे लाभ में बढ़ोतरी होती है जिसकी अक्सर लोग प्रतीक्षा करते हैं। लेकिन किसी बड़े चमत्कार की प्रतीक्षा में बे सब्री से बैठ जाना और है और कार्यक्षता के साथ न खत्म होने वाला लिंक की प्रतीक्षा और है। अहकमुलहाकीमीन के दरबार में सच्चे गुलाम अपनी उम्मीदों को अमल से जोड़ते हैं। कूवते अमल रखने वाला नुकत ए नजर अपनाते हैं और बजाहिर साकिन हालत में इतनी ज्यादा ताकत पैदा कर देते हैं जो पूरी कायनात को बड़े बड़े काम करने के लिए काफी हो सकती है।
एक बे आस आशिक की तरह ऐ महबूब मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा।
अगर तुम मेरे दिल को नशतर के साथ भी चीर कर दे तब भी न छोड़ूंगा।
इसके बावजूद कि यह लोग तीव्रता से खुदा की निकटता की प्रतीक्षा करते हैं लेकिन कभी वह गौर नहीं करते वह उसके उम्मीदों के सिवा सब चीजें अपने दिमागों से निकाल देते हैं और सिर्फ उसके पास होने का सूचते हैं। उनकी बात चीज महबूब की सी हो जाती हैं और उनकी आवाजें मलकूतियत हासिल कर लेती हैं। उनके लिए मोहब्बत से कुछ है वह जिस्म के बगैर तो ही सकते हैं रूह के बगैर नहीं। वह सिर्फ महबूब की मोहब्बत की खातिर अपने दिलों में किसी और को जगह देने को तैयार नहीं होते। उस तरह अगर वह लोग दुनियावी लिहाज से गरीब तरीन और कमजोर तरीन लोग हो वह ऐसा रूतबा पाते हैं जिस पर बादशाह भी इष्र्या करें वह छोटा होते हुए भी बड़े हैं कमजोर होकर भी ताकतवर हैं और अपनी जरूरतों के बावजूद भी इतने मालदार हैं कि पूरी दुनिया पर बादशाहत कर सकते हैं। हालांकि वह एक कमजोर टिमटिमाते हुए दीपक की तरह नजर आते हैं लेकिन वह ताकत के स्रोत की तरह इतने भरपूर हैं कि सूरज को रोशनी पहुंचा सकते हैं। हालांकि हर एक को सच्चे आशिकों की खोज में दौड़ना पड़ता है। लेकिन यह उससे ज्यादा स्पष्ट हैं कि आशिक किस तरफ और किस (खुदा) की तरफ दौड़े चले जा रहे हैं। अपने व्यक्तित्व की मजबूती और दृढ़ता से वह कायनात की हर चीज पर भारी हैं। लेकिन जब खुदा की तरह ध्यानमग्न होते हैं तो वह एक चिंगारी या उससे भी छोटे बन जाते हैं। वह अपने वजूद की ताकत को भुला कर ऐसा निर्जीव हो जाते हैं।
खुदा के बगैर जिंदगी उनके लिए कोई कीमत नहीं रखती हैं। खुद के बगैर कोई जिंदगी ही नहीं। मोहब्बत के बगैर जिंदगी गुजारना बेकार है। और उसके तअल्लुक के बगैर खुशियां सिर्फ इशारों के सिवा कुछ नहीं। यह लोग बगैर किसी रूकावट के मोहब्बत और उत्सुकता की बात करते हैं और जो उनसे वाकिफ नहीं उनको उससे बिल्कुल अलग समझते हैं।
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