आपसी संवाद
इन दिनों लोग कई चीजों मसलन जंग के खतरात आए दिन होने वाले तसादुम, फजायी और आबी आलूदगी, भूख जवाल पजीर अखलाकी अकदार और उसी किस्म के दूसरे मौजआत के बारे में बातें कर रहे हैं। जिस के नतीजे में कई दूसरे मौजूआत सामने आए हैं मसलन अमन, इतमेनान, माहौलियात, इंसाफ, रवादारी और बाहमी मुकालमा जैसे मामिलात बद किस्मती से मसेवाय कुछ मौसर एहतियात तदाबीर एखतियार करने के इस मसले का हल तलास करने वाले फितरत को मजीद मफतूह व मगलूब बनाते हुए मजीद मुहलिक हथियार बनाने में कोसां हैं।
इस मसले की असल जड़ दरअसल मादियत पसंदाना तसव्वुर में पेवस्त है, जिस ने असरी समाजी जिंदगी में मजहब का अमल दखल बुरी तरह से महदूद कर दिया है, और इस का नतीजा इंसानियत और फितरत के माबैन और इंफेरादी सतह पर मर्दोजन के माबैन तवाजुन के बिगाड़ की सूरत में निकला।
सिर्फ कुछ लोगों का इस बात का एहसास है कि समाजी हमआहंगी, निजाम फितरत के साथ मवाफिकत, इंसानो के माबैन अमन व इत्तेफाक और फर्द की जात के अंदर हुस्न तरतीब, सिर्फ इसी वक्त हो सकती है जब जिंदगी के मादी और रूहानी पहलुओं में बाहमी मुफाहमत और जोड़ पैदा होगा। निजाम फितरत के साथ मवाफिकत, समाज में अमन व इंसाफ और तकमील और तकमील जात सिर्फ उसी वक्त हो सकती है बंदा अपने रब के साथ जुड़ा हो।
मजहब बजाहिर मुतजाद चीजों मसलन मजहब और साइंस, दुनिया और अखिरत, फितरत और सहाएफ आसमानी, मादियत और रूहानियत और रूह व जिस्म में हमआहंगी और मुफाहमत पैदा करता है मजहब साइंस मादा परस्ती से होने वाले नुकसानात के खिलाफ एक मजबूत दिफा का काम करता है। साइंस को इस के दुरूस्त मकाम पर लाता है और अकवाम और लोगों के माबैन तसादुम को खत्म करता है।
फितरी साइंस एक रोशन जीने के बजाए जो कि रब कायनात से करीब का जरिया बनती है यकीनी और बे एतकादी का एक ऐसा जरिया बन चुकी हैं जिस की माजी में मिसाल नहीं मिलती क्योंकि मगरिब इस बे एतेकादी का असल मरकज बन चुका है और ईसाईयत इससे सबसे ज्यादा मुतासिर हुई है इस लिए ईसाईयों और मुसलमानों के माबैन मुकालमा न गुजीर हो चुका है। बैनुल मजाहिब मुकालमे का मकसद महज यह नहीं कि साइंस मादह परस्ती को नेस्त नाबूत करते हुए इस का आलमी सतह पर तबाहकुन तसव्वुर खत्म किया जाए बल्कि मजहब की असल रूह इस चीज की मुतकाजी है। यहूदियत, ईसाईयत और इस्लाम और हत्ता कि हिन्दूइज्म और दूसरे मजाहिब एक ही मंबा को तसलीम करते हैं और बसमूल बुद्धमत उसी मकसद के हुसूल के लिए कोशां है बहैसियत एक मुसलमान में तमाम अंबिया और तारीख में मुखतलिफ कौमों के लिए भेजी जाने वाली तमाम आसमानी किताओं पर इमान रखता हूँ और उन पर इमान रखने को बतौर मुसलमान लाजमी समझता हूँ एक मुसलमान हजरत इब्राहीम, हजरत मूसा, हजरत दाउद, हजरत ईसा और दूसरे तमाम अंबिया का सच्चा पैराकार होता है। किसी एक भी नबी या आसमानी किताबों पर इमान न रखने का मतलब मुसलमान न होना है इस लिए हम मजहब की वहदत बुनियादी यकजहती पर यकीन रखते हैं जो कि रब्बे कायनात की रहमत का जरिया और मजहब पर इमान की आफादियत की दलील है।
लिहाजा इस तरह मजहब इमान का एक ऐसा निजाम है जो तमाम नस्लों और तमाम अकायत को अपनी आगोश में लेता है और एक ऐसी शाहेराह है जो कि हर फर्द को भाई चारे के हेमागीर दायरे में लेती है।
कतअ नजर इस के हर मजहब के पैरोकार अपनी रोजमर्रा जिंदगी में किस तरह इस पर अमल पैरा होते हैं मजहब बिलउमूम प्यार मोहब्बत बाहमी एहतेराम रवादारी, अफू व दरगुजर, खुदातरस्ती, इंसानी हुकूक की पासदारी, अमन आशती, भाई चारे और आजादी जैसी अकदार को प्राथमिकता देता है। इनमें से अकसर अकदार को हजरत मूसा, हजरत ईसा और मुहम्मद के पैगाम में नुमाया हैसियत हासिल थी और इस के साथ साथ बुद्ध, जरथ्रुस्त, लावोजु, कन्फ्यूशिस और हिन्दू स्कालरज के पैगाम में भी।
हमारे पाक नबी पाक हजरत मुहम्मद को बयान मौजूद है जिसका जिक्र गालिबन हदीस की तमाम किताबों में मौजूद है कि दुनिया के खातमे के करीब हजरत ईसा को फिर से जहूर होगा, हम यह नहीं जानते कि आया उन का जहूर जिसमानी तौर पर होगा लेकिन हम यह जानते हैं कि जब आखिरी जमाना करीब आएगा तो प्यार मोहब्बत, अमन, भाई चारा, अफू, दरगुजर, खुदातरस्ती और रूहानी पाकीजगी जैसी अकदार को औवलियत हासिल होगी जिस तरह हजरत ईसा के दौर में थी मजीद यह कि हजरत ईसा को यहूदियों की तरफ भेजा गया था और क्योंक तमाम इबरानी अंबिया ने उन्हीं अकदार को औवलियत दी इस लिए यहूदियों से मुकालमा जरूरी हो गया और इस्लाम, ईसाईयत और यहूदियत के माबैन करीबी तअल्लुकात भी लाजमी तौर पर कायम करने होंगे।
कट्टर मुसलमानों, ईसाईयों और यहूदियों के माबैन मुकालमे के कई मुशतरिक निकात हैं, जैसा कि फलसफे के एक अमरीकी प्रो. माइकल स्कोगरवर्ड ने कहा कि मुसलमान और यहूदी को एक दूसरे से करीब लाने की। नजरियात और मजहबी वजूहात इतनी ही हैं जितनी की ईसाईयों और यहूदियों को एक दूसरे से करीब लाने की। मजीद यह कि अमली और तारीख तौर पर इस्लामी दुनिया ईसाईयों से मुआमिलात तय करने का बेहतर रिकार्ड रखती है। इनके माबैन न तो कोई इम्तियाज है और न ही कोई होलोकास्ट, इसके बरअक्स मुश्किलात के दोर में हमेशा उन्हें खुश आमदीद कहा गया है। मसलन यहूदियों को स्पेन से निकाले जाने के बाद सल्तनत उस्मानिया ने उन्हें गले लगाया।
बाहमी मुकालमा और मुसलमानों की मुश्किलात
ईसाईयों, यहूदियों और दूसरों को बाहमी मुकालमे की सूरत में अंदरूनी मुश्किलात का सामना हो सकता है मैंने कुद वजूहात को जायजा पेश किया करना चाहूँगा जिन की बिना पर मुसलमानों को मुकालमा में मुश्किलात पेश आ सकती हैं और यही वजूहात इस्लाम के बारे में पैदा होने वाली गलत फहमी की जिम्मेदार हैं।
फिलर और लेसर के मुताबिक सिर्फ पिछली सदी में मगरिबी ताकतों के होथों जितने मुसलमान शहीद हुए पूरी तारीख में मुसलमान के हाथों हलाक होने वाले ईसाईयों की संख्या इस के बराबर नही। कई मुसलमान इससे भी ज्यादा संख्या पेश कर रहे हैं। ओर इस यकीन का इजहार कर रहे हैं कि मगरिबी पालिसियों का मकसद मुसलमानों को कमजोर करना है। यह तारीखी तर्जुबा पढ़े लिखे और बशवूर मुसलमानों के दिलों में पुख्ता करने का बाअस बन रहा है कि मगरिब इस्लाम के खिलाफ एक हजार वर्ष पुरानी जारिहत को जारी रखे हुए है और इस से भी बढ़कर तल्ख हकीकत यह है कि इसके लिए इंतेहायी जदीद और पेचीदह तरीकाकार बरूएकार लाये जा रहे हैं। नतीजतन कलेसा की तरफ से मुकालमे की दावत को शक व शुबा की निगाह से देखा जा रहा है मजीद बरां इस्लामी दुनिया बीसवीं सदी में मगरिब के बराहरास्त या बिलवास्ता गल्बे के साये में दाखिल हुई इस दुनिया के सब से बड़ी नुमाइंदा और मुहाफिज सल्तनत उस्मानिया मगरिब हमलों की बिना पर जमीनबोस हुई तुर्की ने बैरूनी हमलों के खिलाफ मुसलमानों की कोशिश की बड़ी लिदचस्पी से हिमायत की मजीद यह कि 1950 ई. की दहाई में तुर्की के अंदर डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपलज पार्टी के बाहमी तसादुम की वजह से इस्लाम के बारे में मजाहमत पसंदो और बाज अवकात दानिशवरों के जहनों में इस्लाम को तसादुम पजीर मजाहमती और सियासी निजाम का तसव्वुर पैदा हुआ बजाय इसके इस एक इंसान की कल्बी, रूहानी और फिक्री इस्लाह करने वाला मजहब समझा जाता बाज इस्लामी मुमालिक बसमूल तुर्की में इस्लाम की किसी जमाअत की आडियोलाजी समझने की वजह से इस तसव्वुर को मजीद तकवियत मिली।
इसके नतीजे में सेकुलर सोच के हामिल अफराद और बाज दूसरे लोगों ने मुसलमानों और इस्लामी सरगर्मियों को शक की निगाह से देखना शुरू कर दिया।
इस्लाम को एक सियासी नजरिए के तौर पर भी देखा जाने लगा क्योंकि मुसलमानों की जंग आजादी को बाअस बनता है जबकि मजहब इंसान के जहन को रोशनी अता करने के साथ साथ इमान तवक्कल सुकूने कल्ब, एहसास और तजुर्बा की बुनियाद पर अदराक की कुवत बख्शता है। मजहब की बुनियाद रूह इंसान में इमान, मोहब्बत, खुदातरस्ती और हमदर्दी पैदा करना है इस्लाम को एक सख्तगीर सियासी नजरिया और आजादी हासिल करने के नजरिए तक महदूद करने से इस्लाम और मगरिब के माबैन एक दीवार खड़ी कर दी गयी और इस की बिना पर इस्लाम के हवाले से गलत फहमियां पैदा हो गयीं।
ईसाई तारीख ने तारीख ने इस्लाम की जो शक्ल पेश की उस की बिना पर बैनुल मजाहिब मुकालमे के हवाले से मुसलमानों के एतेमाद को ठेस पहुंची कई सदियों तक ईसाईयों को यह बावर कराया गया कि इस्लाम यहूदियत और ईसाईयत की एक बिगड़ी हुई शक्ल है और उस तरह नबी पाक को (नउज बिल्लाह) एक बनावटी, और हजरत ईसा को मुखालिफ बना कर पेश किया जाता है रहा जिस की मुसलमान एक देवता के तौर पर परस्तिश करते हैं हत्ता कि आजकल किताबों में भी आप को एक अजीबो गरीब तसव्वुरात के हामिल शख्स के तौर पर जो हर सूरत में कामयाबी हासिल करना चाहता हो के तौर पर पेश किया जाता है।
मुकालमा जरूरी हैः-
आज बैनुल मजाहिब मुकालमे की अशद जरूरत है और इसके लिए पहले कदम के तौर पर हमे माजी को फरामोश करना होगा मुनाजिरे बाजी को खत्म करना होगा उमूमी निकात को तरजीह देने की रूझान को खत्म करना होगा जो कि मनाजिरे बाजी से भी ज्यादा से भी ज्यादा बढ़कर है मगरिब में दानिशवरों और मजहब पेशवाओं के रवैयों में इस्लाम के हवाले से तबदीली नजर आ रही है यहां पर मेसीगनन (मरहूम) को हवाला खुसूसी तौर पर देना चाहुंगा जिन्होंने इस्लाम के बारे में अपने ख्यालात को इजहार कुछ इस तरह से किया “हजरत इब्राहीम अलैहसलाम का दीन जिस का अहया मुहम्मद ने किया” वह यह यकीन रखते हैं कि ईसाईयत के बाद के दौर में इस्लाम का किरदार मुस्बत बल्कि पैगम्बराना है इस्लाम एक इमान व यकीन का दीन है यह फलसफों के खुदा पर फितरी यकीन को दीन नहीं बल्कि इब्राहीम के खुदा, इसहाक के खुदा, इस्माईल के खुदा पर इमान का दीन है यह रजाए इलाही को एक अजीम इसरार है वह कुरआन की खुदाई तसनीफ और मुहम्मद की नबूवत पर यकीन रखते हैं।
हमारे नबी पाक के हवाले से मगरिब के तसव्वुर में भी कुछ नरमी पैदा हुई है ईसाई पेशवाओं के साथ साथ कई मगरिबी मुफक्किरीन मेसिगनन, चाल्र्स जे लेडिड, वाये मुबारक, आयरीन एम डाल्म्स, एल गारडिट, नारमन डेनियल माइकल ली लांग, एच मारियर, आलिव ले कोम्बे और थामस मर्टिन ने इस्लाम और नबी पाक दोनों के लिए गरमजोशी जाहिर की है और मुकालमें की जरूरत की भी हिमायत की है इसके अलावा सेकंड वेटिकन काउंसिल ने भी जिस ने बाहमी मुकालमे के अमल का आगाज किया यह है कि इस्लाम को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता इसका मतलब यह हुआ कि इस्लाम के बारे में कैथोलिक चर्च को रवैया तबदील हो चुका है काउंसिल के दूसरे दौर में पाॅप पाल (छठे) ने कहा।
“दूसरी तरफ कैथोलिक चर्च इससे भी बढ़ कर ईसाईयत के उफक से परे देख रहा है अब उन दूसरे मजाहिब की जानिब मुतवज्जह हो रहा है जो एक खुदा का तसव्वुर महफूज रखते हैं जो बरतर, सब को खालिक और हमारी किस्मत और फहम व दानिश को मालिक है यह मजाहिब खुदा की इबादत पूरे खुलूस और अमली अकीदत के इजहार के जरिए करते हैं।
उन्होंने इस चीज को भी निशानदही की कि कैथोलिक चर्च इन मजाहिब के खैर, सच्चाई और इंसानी पहलुओं की भी तारीफ व तौसीफ करता है
“चर्च इस बात की तौसीक करता है कि जदीद मुआशरे में मजहब के मफहूम के साथ बर करार रखने के लिए और खुदा की बंदगी की खातिर चर्च अज खुद बंदे पर खुदा के हुकूक की सखती से ताईद करने वाला बनेगा ।
नतीजतन आखिर में जारी किये गये तहरीर बयान में जिस को उनवान कलेसा के गैर ईसाई मजाहिब से तअल्लुकात का अलमिया था कहा गया कि हमारी दुनिया में जो क सिकुड़ चुकी है और जहान तअल्लुकात में ज्याद कुरबत आ चुकी है लोग मजहब से इंसानी फितरत के उन पर इसरार पहलुओं के हवाले से जो इंसान के दिल को उलट पलअ देते है तसल्ली कख्श जवाब चाहते हैं। इंसान क्या है? जिंदगी को मफहूम और मकसद क्या है? नेकी और भलाई क्या है? इसका अजर क्या है? और गुनाह क्या है? अजीयत और इबतेला का मंबा क्या है? हकीकी खुशी हासिल करने का कौन सा रास्ता है? मौत क्या है मरने के बाद आमाल की जांच परख क्या है और दुनिया आमाल के बदले मिलने वाले समर का मामला क्या है? अदम और वजूद का इसरार क्या है।
इन मौजूआत के हवाले से दूसरे मजाहिब अपने अपने तुकताहाय नजर रखते हैं और यह कि चर्च दूसरे मजाहिब की अकदार को कलीतौर पर रद्द नहीं करता काउंसिल दूसरे मजाहिब के मेम्बरान से बाहमी मुकालमे की हौसला अफजायी करता है।
चर्च अपने फरजिंदो की बतौर ईसाइ जिंदगी बसर करने की हौसला अफजायी करने के साथ साथ दूसरे मजाहिब के पैराकारों के बारे में मुहतात अंदाज में हमदर्दी के साथ मुकालमे के जरिए और उनके साथ तआवुन करते हुए उन्हें समझने की और उनमें इखलाकी और समाजी अकदार के फरोग की हौसला अफजायी करता है। एक दूसरा अहम तुकता यह है कि पाप जान पाल (द्वितीय) अपनी किताब “Crossing The Threshold of Hope” में (मुसलमान की लापरवाही की बावजूद) यह कहते है कि मुसलमान ही सब से बेहतर अंदाज में ध्यान के साथ इबादत करते हैं वह अपने कारईन को इस बात की याद दिहानी करवाते है कि इस हवाले से ईसाईयों को मुसलमानों को एक मिसाली नमूना के तौर पर लेना चाहिए।
इसके अलावा आज के जदीद दुनिया में मादियत के तसव्वुरात की इस्लाम की तरफ से मजाहमत और इस के अहम किरदार पर भी मगरिबी मुबस्सिरीन हैरान हैं ई. एच. जरजी की इस हवाले से मुशाहदाद बहुत अहम हैं।
अपनी अहमियत, अपनी बका और हकीकत मंदाना जज्बा के हवाले नसली और मारकसी तसव्वुरात के खिलाफ एकजहती के हवाले से इस्तेहसाल की खुली, मजम्मत के हवाले से भटकी हुई और खून आलूदह इंसानियत के हवाले से इस्लाम आज की जदीद की दुनिया का सामना एक खुसीसी मिशन के हवाले से करना है न तो मजहबी बारीकियों की बिना पर इस्लाम किसी मखमसे को शिकार है ओर न ही यह अंदर से बंटा हुआ है उसूल व अकायद के कट्टरपन के बोझ तले भी नहीं दबा हुआ अजम की पुखतगी का मंबा इस्लाम और जदीद दुनिया का तवाफिक है।
मुसलमान और मगरिब करीबन चैदह सौ बरस से एक दूसरे से नंबर्दआजमा हैं मगरिब के नुकतानजर से इस्लाम ने मगरिब में कई दिशाओं से दरांदाजी की और उस के लिए खतरे का बाअस बना यह हकायक अब तक नहीं भुलाये गये।
हकीकत यह है कि महाज आराई की बिना पर मुसलमानों का मगरिब की मुखलिफत करना या उन्हें नपसंद करना इस्लाम और मुसलमानों दोनों के लिए फायदामंद नहीं है जदीद जराए मवासलात और नकल व हमल ने पूरी करह अर्ज को एक आलमी गाँव मे तबदील कर दिया है और अब हर किस्म के तअल्लुकात बाहमी असरात के हामिल है।
मगरिब इस्लाम या इस की सरजमीन को सफहे हस्ती से नहीं मिटा सकती और न ही मुसलमान फौजें मगरिब की सरजमीन पर पेश कदमी कर सकती है।
मजीद बरां अब जबकि दुनियां में बाहमी ताम्मुल मजीद बढ़ चुका है दोनो दिशाओं में कुछ लो और कुछ दो की बुनियाद पर तअल्लुक उसतवार करना चाहती हैं मगरिब साइंस, टेकनालाजी, माशियात और फौजी बरतरी रखता है ताहम इस्लाम जिस चीज का मालिक है वह ज्यादा अहम अवामिल हैं जैसा कि कुरआन और सुन्नत उसे पेश करते हैं इस्लाम ने अपने अकायद को इस की रूहानी माहियत को नेकी और भलाई के तसव्वुर को इखलाकियात को बरकरार रखा है और गुजिश्ता चैदह सदियों से इस्लाम के तमाम पहलू खुलते चले जा रहे हैं इस के अलावा इस में मुसलमान के अंदर एक नई रूह और जिंदगी फूंकने की कुवत छुपी है जोकि कई सदियों से ख्वाबदीदा और इस के अलावा कई दूसरे इंसानों में भी जो कि मादह परस्ती की दलदल में फंसे हुए है।
कोई भी मजहफ फलसफे और साइंस की आंधी से मुतासिर होने से नहीं बच सका और वसूक से नहीं कहा जा सकता कि आगे यह आंधी शिद्दत एखतियार नहीं करेगी यह और कई दूसरे अवामिल मुसलमानों को इस बात की इजाजत नहीं देते कि यह इस्लाम को खालिस्तन एक सियासी और मुआशी नजरिए के तौर पेश करें और न ही यह अवाम मुसलमानों को इस चीज की इजाजत देते है कि मुसलमान मगरिब ईसाईयत यहूदियत और कई दूसरे प्रसिद्ध मजाहिब मसलन बुद्धमत को तारीखी तनाजुर में देखें और इसके मुताबिक रवैया अपनाए।
वह लोग जिन्होंने इस्लाम को एक साइंस नजरिए के तौर पर न कि एक मजहब के तौर पर एखतियार किया है उन्हें जल्द ही इस बात को एहसास हो जाएगा कि इसके पीछे कारफरमा कुवत जात या कौमी जाती या कौमी अनादो नफरत और उस किस्म कि महररिकात थे।
अगर यह बात हो तो हमें इस्लाम को तसलीम करते हुए बुनियादी नुकता आगाज के तौर पर इस्लामी तर्ज अमल को न कि मौजूदा जबर ज्यादती को अपनाना चाहिए कि हजरत मुहम्मद ने सच्चा मुसलमान उन्हें करार दिया जो अपने कलाम और अमल से किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते और आलमी अमन के सब से ज्यादा काबिल भरोसा नुमाइंदा हैं मुसलमान जहां कहीं भी जाते हैं इस बलंदतर एहसास के साथ जाते हैं कि जो उन के दिल की गहराई में परवरिश पा रहा होता है किसी के लिए इजाद सानी या तकलीफ का बाअस होने के बरअक्स यह अमन और सलामती को नमूना हैं उन के नजदीक जिस्मानी या जबानी तशद्दुद मसलन गीबत, तुहमत, तजहीक या तंज व तसना में कोई फर्क नहीं होता हमारी सोच और फिक्र को नुकता आगाज इस्लामी बुनियादों पर होना चाहिए मुसलमानों को बाहमी मिलाप व इश्तेराक सियासी या नजरियाती बुनियाद पर नहीं होता जैसे बाद में महज दिखावे के लिए इस्लाम का लबादा पहना दिया जाता है या महज अपनी ख्वाहिशात को नजरियात के तौर पर पेश कर दिया जाए अगर हम इस रूझान पर काबू पा लें तो इस्लाम की असल शक्ल व सूरत वाजे होगी इस्लाम की मौजूदा मस्खशुदा शक्ल जो कि गलत इस्तेमाल को नतीजा है और जो मुसलमानों और गैर मुस्लिमों के हाथों हुई इसने मुस्लिम और गैरमुस्लिम दोनो को खौफजदह कर दिया।
सिडनी गिरेफ्थ एक अहम हकीकत कि तरफ इशारा करते हैं जिस के तनाजुर में मगरिब इस्लाम को देखता है वह कहते हैं अमरीका यूनिवर्सिटी में इस्लाम को एक दीन के तौर पर नहीं पढ़ाया जाता बल्कि सियासत या बैनुल अकवामी तअल्लुकात के डिपार्टमंट में उसे पालिटिकल साइंस के तौर पर पढ़ाया जाता है और इस्लाम दुनिया के मगरिब जदह हल्कों में और एशिया और अफरीका में गैर मुस्लिमों में भी यही तसव्वुर मौजूद है ज्यादा हैरानगी की बात यह है कि इस्लाम के परचम तले आगे बढ़ने वाले कई गिरोहों ने इस्लाम का यही तसव्वुर बरामद किया है और उसी तसव्वुर को तकवियत दी हैं
मुकालमा के लिए इस्लाम को आफाकी पैगामः-
चैदह सौ साल कब्ल इस्लाम की पुकार उन सब में अजीम तर थी जिस को तजुर्बा दुनिया को कभी भी हुआ था कुरआन पाक अहले किताब से मुखातिब होते हुए कहता है।
“ये अहले किताब और एक ऐसी बात की तरफ जो हमारे और तुम्हारे मध्य एकसां हो। यह एक हम अल्लाह के किसी की बंदगी न करें इस के साथ किसी को शरीक न ठहरायें और हम में से कोई अल्लाह के सिवा किसी को अपना रब न बनाये। इस दावत को कबूल करने से अगर वह मुंह मोड़े तो साफ कह दो कि गवाह रहो हम तो मुस्लिम (सिर्फ खुदा की बंदगी और इताअत करने वाले) हैं।
यह पुकार जो कि नौ हिजरी में आई उस का आगाज (अरबी) “ला” से हुआ यानी “नहीं” जोकि दीन इस्लाम में ला इलाहा इल्लल्लाह, के तौर पर मुकम्मल हुक्म है किसी मुसबत चीज को हुक्म देने की बजाए बाज काम न करने को कहा गया है ताकि इल्हामी मजाहिब के पैरोकार अपनी बाहमी दूरी को खत्म कर सकें एक ऐसा वसीह तर्जुमान जिस पर तमाम मजाहिब के लोग मुŸाफिक हो सकें अगर लोग इस पुकार को मुस्तरद करते है तो फिर उनके लिए कुरआन पाक की यही आयत थी। “तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन”
यानी इसका मतलब यह हुआ कि अगर दूसरे इस पुकार को कबूल नहीं करते तो हम अपने तौर पर अल्लाह के हुजूर सर बसूजूद है हम इस राह पर चलते रहेंगे जो हम ने चुनी है और तुम्हें और तुम्हें तुम्हारी राह मुबारक हो।
अलमालियाती हामिदी याजर जो कि एक प्रसिद्ध तुर्क मुफस्सिरे कुरआन है ने इस कुरआनी आयत के बारे में बड़ी दिलचस्प बात कही।
“इससे जाहिर होता है कि किसी तरह मुखतलिफ उफकार” अकवाम मजाहिब और आसमानी सहायफ को एक फिक्र और सच्चाई में समो दिया गया और उसे किस तरह इस्लाम ने इंसानियत को निजात और आजादी को वसीह, फराख और सच्चा रास्ता दिखाया, यह बात बिल्कुल वाजेह है कि यह महज अरब और गैर अरब तक महदूद नहीं है मजहबी तरक्की फिक्री तंग नजरी और एक दूसरे से दूरी से मुम्किन नहीं बल्कि उनकी अफादियत और उसअत पर मुंहसिर है।
इस्लाम ही फिक्री उसअत और निजात की यह शाहेराह है और आजादी को यह उसूल हमारे लिए एक तोहफे की हैसियत रखता है बदीउलजमा नूरसी ने दायरा इस्लाम की कुशादगी को इस्तांबुल की बयजीद मस्जिद में इस तरह बयान किया।
एक बार मैंने इस्म जमीर “हम” पर गौर किया जो कि एक आयत में यूं इस्तेमाल हुआ है “हम” तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं।
और मेरा जी चाहा कि मै इस बात की वजह जान सकूं कि “मैं” की बजाए “हम” का शब्द क्यों इस्तेमाल हुआ है और अचानक मुझे बजमाअत नमाज की सिफत और उस में पोशीदा हिकमत समझ में आयी।
मैंने देखा कि बयजीद मस्जिद में नमाज की बजमाअत अदायगी से हर फर्द मेरी सिफाअत कि दुआ करने वाला बन किया था और जब तक मैं कुरआन की केरात करता रहा हरेक मेरी गवाही देता रहा।
इज्तेमाई तौर पर किए जाने वाले बंदगी के इजहार ने मुझे यह हौसला दिया गया मैं अपनी टूटी फूटी नमाज को बारगाह इलाही में पेशकर सकूं।
अचानक मुझ पर एक और हकीकत को इंकेशाफ हुआ इस्तांबुल की तमाम मसाजिद एक साथ बा यजीद की सरपरस्ती में आ गयीं
मुझे यूं महसूस हुआ कि यह सब मेरे मकसद की तौसीह कर रही हैं और हर फर्द ने मुझे अपनी नमाज में सामिल कर लिया है। इस वक्त मैंने खूद को एक मस्जिद में पाया जोकि खाना ए काबा को चारों तरफ से दायरे में लिए हुई मजासिद में से एक थी। मेरे मुंह से निकला “ये अल्लाह तमाम तारीफें तेरे लिए ही हैं मेरे पास शिफाअत की दुआ करने वाले इतने बंदे हैं यह सब हैं यह सब भी वही कह रहे हैं जो मैं कह रहा हूँ और मेरी बात की तौसीक कर रहे हैं।
इस हकीकत के इंकेशाफ के बाद मैं ने खुद को काबा के सामने खड़ा पाया इस मौका से फायदा उठाते हुए मैंने कतार दर कतार खड़े होकर नमाजियों को गवाह बनाया और कहा मैं गवाही देता हुँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।
मैंने इस शहादत का गवाह हजरे असवद को भी बनाया और अचानक मुझ पर एक और इंकेशाफ हुआ मैंने देखा वि वह जमात जिसके साथ मैं नमाज अदा कर रहा था तीन दायरों में तकसीम हो गयी।
पहली जमात अल्लाह और उसकी वहदत पर इमान रखने वालों की थी दूसरी दायरे में अल्लाह की तमाम मखलूकात अल्लाह को याद कर रही थी हर मखलूकात अपने अंदाज में इबादत में मसरूफ थी और मैं भी उस जमात में शरीक था तीसरे दायरे में मैं ने एक अजीब हल्क़ा देखा तो बजाहिर छोटा था लेकिन फर्ज के हवाले से और मेआर के हवाले से बहुत बड़ा था मेरे जिस्म के जरात से लेकर खारजी हवास तक हल हल्का बंदगी और इताअत में मसरूफ था।
संक्षेप में यह कि इस्म जमीर “हम” जोकि “हम तेरी इबादत करते हैं” में इस्तेमाल हुआ है उन तीनो जमातों को जाहिर करता है मैंने तसव्वुर किया कि हमारे नबी जोकि कुरआन की अमली तफसीर हैं मदीना में खड़े हैं नबी नूह इंसान से मुखातिब होते हुए कह रहा है लोगो बंदगी एख्तियार करो अपने रब की।
दूसरे इंसानों की तरह मैंने भी उस हुक्म को अपनी रूह में उतरते महसूस किया और मेरी तरह सब ने जवाब में कहा “हम तेरी ही इबादत करते हैं”
कुरआन पाक में अल्लाह तआला फरमाते हैं
ये अल्लाह की किताब है, इसमें कोई शक नहीं। यह हिदायत है इन परहेजगार लोगों के लिए जो गैब पर इमान लाते हैं बाद में यह बताया गया है कि यह मुत्तकी लोग वह हैं।
जो गैब पर इमान लाते हैं, नमाज कायम करते हैं जो रिज्क हमने उनको दिया है उस में से खर्च करते हैं जो किताब तुम पर नाजिल की गयी है (यानी कुरआन) और जो किताबें तुमसे पहले नाजिल की गयी थीं उन सब पर इमान लाते हैं और आखिरत पर यकीन रखते हैं।
कुरआन पाक इब्तेदा ही से बड़े तीखे अंदाज में लोगों से पहले वाले अंबिया और उनकी किताबों पर इमान लाने को कहा है कुरआन पाक की इब्तेदा में ही यह शर्त मेरे लिए बहुत अहम है और खास कर दूसरे मजाहिब के पैरोकारों के साथ मुकालमा के हवाले से एक दूसरे आयत में अल्लाह तआला हुक्म देते हैं।
और अहले किताब से बहस न करो मगर उम्दा तरीके से
इस आयत से पता चलता है कि कौनसा अंदाज और कौन सा तर्ज फिक्र अपनाना है बदीउलजमा को नुकत ए नजर और इंतिहाई मुंफरिद है कोई भी शख्स जो अपनी मुखालिफ को बहस में शिकस्त देना चाहता हो रहम के जज्बे से खाली है।
वह मजीद वजाहत करते हुए कहते हैं
अगर तुम्हें शिकस्त हो जाय और दूसरा फतहयाब हो जाए तो आप को अपनी खामी दूर करनी चाहिए अपनी अना कि तसकीन के लिए नहीं होनी चाहिए बल्कि हकायक की जानकारी के लिए हो एक और जगह आता है।
अल्लाह तुम्हें इस बात से नहीं रोकता की तुम उन लोगों के साथ नेकी और इंसाफ को बरताव करो जिन्होंने दीन के मामले में तुम से जंग नहीं की और तुम्हें तुम्हारे घरों में से नहीं निकाला है अल्लाह इंसाफ करने वालों को पसंद करता है।
बाज लोगों के मुताबिक बाज आयात में अहले किताब पर शख्त तंकीद की गयी है दर हकीकत इस किस्म की गलत रवियों के खिलाफ ज्यादा शख्त तंकीद मौजूद है ताहम इस किस्म की शख्स तंकीद के बाद लोगों के दिलों को सच्चाई के लिए बेदार करने और उम्मीद पैदा करने के लिए नरम वाक्य इस्तेमाल किये गये हैं।
इस के अलावा कुरआन पाक ने यहूदियों, ईसाईयों और मुशरिकों के जिन रवियों पर तंकीद की है उनका रूख उन मुसलमानों की तरफ भी है जो इस किस्म के तर्ज अमल को शिकार हुए कुरआन पाक के कारी और मुफस्सिर दोनों इस बात पर मुत्तफिक हैं इल्हामी मजाहिब बद नजमी ओर बे तरतीबी, धोखा व फरेब फसाद और जुल्म की सख्ती से मुमानियत करने हैं इस्लाम को लफजी मतलब अमन, सलामती और भलाई है फितरी तौर पर अमन, सलामती और भलाई का दीन होने के नाते इस्लाम जंग को एक गलत रविये के तौर पर देखता है जिस पर काबू पाना चाहिए ताहम जाती दिफाअ को मामला इस्तेसनाई है इस तरह के एक जिस्म अपने ऊपर हमलावर होने वाले जरासीम के खिलाफ लड़ता है ताहम जाती दिफाअ भी कुछ रहनुमा उसूल के मुताबिक होना चाहिए इस्लाम ने हमेशा अपन और भलाई की बात की है जंग को एक हादसा करार देते हुए इस्लाम ने जंग को भी मुतवाजिन बनाने और एक हद में रखने के लिए कानून बनाये हैं मिसाल के तौर पर इस्लाम इंसाफ और आलमी अमन को इस तरह लेता है।
किसी गिरोह की दुश्मनी तुम को इतना मुशतअल न कर दे कि इंसाफ से फिर जाओ।
इस्लाम ने जो दिफायी हद तखलीक की इस की बुनियाद मजहब जान व माल, फिक्र और नस्ल कुशी को तहफ्फुज करने वाले उसूल थे। मौजूदा कानूनी निजाम ने भी यही कहा है।
इस्लाम इंसानी जिंदगी को सब से ज्यादा कीमती समझता है इस्लाम एक इंसान के कत्ल को पूरी इंसानियत को कत्ल समझना है। किसी एक इंसान के कत्ल से मुराद किसी भी इंसान को कत्ल लिया जाए। हजरत आदम को बेटा काबील पहला कातिल था अगर उनकी नाम कुरआन पाक या सुन्नत में तखसीस के साथ नहीं दिये गये लेकिन हम आंजिल में पड़ते हैं कि काबील ने हाबील को गलत फहमी की बिना पर रिकाबत की आग में जल कर नाजायज तौर पर कत्ल कर दिया था।
इस तरह खून खराबे के दौर का आगाज हुआ उसी एक बिना पर एक दहीस में नबी पाक फरमाते हैं
“जब भी एक नाजायज कत्ल किया जाता है तो उस को कुछ गुनाह काबील के हिस्से में भी जाता है क्योंकि उसने नाजायज कत्ल की राह खोली थी।
कुरआन पाक में यह भी इरशाद होता है कि जिस किसी ने एक इंसान को कत्ल किया गोया उसने पूरी इंसानियत को कत्ल किया और जिस ने किसी एक इंसान की जान बचाई उसने सारे इंसानियत की जान बचाई।
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