ज्ञान के मोती
बहुमत का विरोध एक गलती है। लेकिन ये तभी सत्य है जब बहुमत सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है, अन्यथा इससे सहमत होना एक गलती है। एक अभियंता का विरोध औषधियों के विशय करना उचित है, ठीक वैसे ही जैसे निर्माण परियोजना में एक डाक्टर से परामर्श न लेना ही उचित है।
केवल बल और योग्यता की कमी ही असहाय होना नहीं है। बहुत से शक्तिशाली और योग्य व्यक्ति भी असहाय देखे जाते हैं क्योंकि किसी ने भी कभी उनसे लाभ प्राप्त करने हेतु उनका आश्रय लेने के बारे में नहीं सोचा।
न अंधकार और ना ही कोई प्रकाश उनके अंदर से आ रहे प्रकाश को पराजित कर सकता हैं प्रकाश के ऐसे स्रोत उनके पूरे प्राकृतिक जीवन काल में अन्य चीजों के बावजूद जलते रहेंगे। और उनके चारों ओर के वातावरण को प्रकाशवान करेंगे।
जो लोग अपने अनुसार कार्य करते है वे उतने नहीं होते जितने वे लोग जो अपने ज्ञान के अनुसार कार्य करते है। जो लोग अपने ज्ञान के आधार पर कार्य करते हैं वे उतने सफल नहीं होते जितने वे लोग जो अपने स्वविवेक के अनुसार कार्य करते हैं।
धन का अभाव ही दरिद्रता नहीं है बल्कि ज्ञान, विचारों और योग्यता का अभाव भी दरिद्रता ही है। इस प्रकार वैभवशाली लोग जिनमें ज्ञान, विचारों और योग्यता का अभाव है उन्हें भी दरिद्र ही समझा जा सकता है।
ऐनक नेत्रों का वाहन है, मस्तिष्क अंतरदृष्टि के लिए वाहन है और अंतरदृष्टि अंतरात्मा का वाहन है। अंतरात्मा एक बाहाद्वार है जिसके द्वारा आत्मा बाहर देख सकती है और एक वाहन है जिसके द्वारा वो देख सकती है।
मानवता एक वृक्ष है और राष्ट्र इसकी शाखाएं हैं। बहुत सी घटनाएं भारी हवा के झोंकों की तरह इन्हें एक दूसरे के फिलाफ झकझोरती है और इनके बीच कलह का कारण बनती है। इसके परिणामस्वरूप् जो हानि होती है वो निश्चय ही वृक्ष को सहन करती पड़ती है। अर्थात: “ जो कुछ भी हम करते हैं, स्वयं के लिए ही करते हैं।”
रात्रि एक रंगमंच की तरह है जिसमें लोग खोज और विकास करते हैं और मानवीय सुख और शांति के लिए तैयार होते हैं। महान विचार और कार्य सदा कंदराओं के अंधकार में ही विकसित हुए और जनहित के लिए प्रस्तुत किए गए।
आमाशय अपचित भोजन, जिसका कोई लाभ नहीं, को बाहर फेंक देता है। समय और इतिहास भी निरर्थक लोगों के साथ ऐसा ही करता है...
मुर्चा लोहे का शत्रु है, सीमा (धातु) हीरे का शत्रु है, और बुरा आचरण आत्मा का शत्रु है। आज या कल ये उसे अवश्य हानि पहुंचाएगा।
प्रत्येक बाढ़ एक छोटी बूंद से ही शुरू होती है जिसके अस्तित्व और आकार उपेक्षा की जाती है। धीरे-धीरे वो ऐसे स्तर पर पहुंच जाती है जिसे रोक पाना असंभव हो जाता है। एक समाज का निकाय इस तरह की बाढ़ के लिए सदा खुला है।
यदि ज्ञान और सत्य की व्याख्या बुरे आचरण वाले अनुभवहीन लोगों के सामने करना उतना ही कठिन है जितना पागल लोगों के सामने, तब भी समझदार लोगों को इस कर्तव्य का पालन अवश्य और उत्कंठा के साथ करना चाहिए।
क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति स्पष्ट सत्य को समान स्तर पर नहीं समझ सकता, इसलिए प्रदर्शन, वर्णन और आदर्श प्रस्तुत करने के समर्थन में काल्पनिक व्याख्या को त्याग दिया गया।
लोग सामान्यतः समय और स्थान को दोष देते हैं जबकि दोष सदा अज्ञानता में होता है। समय और नियति निर्दोष है जबकि मानवता कृतघ्न और अज्ञानी हैं कुछ उष्मित, बुरे भरे और फूलों से सुसज्जित मार्ग धीरे-धीरे मृत्यु की घाटी को जाते हैं जबकि अन्य ढलावदार और कांटों से भरे मार्ग स्वर्ग की ओर जाते हैं।
कुछ उष्मित, हरे भरे और फूलों से सुसज्जित मार्ग धीरे-धीरे मृत्यु की घाटी को जाते है जबकि अन्य ढलावदार और कांटो से भरे मार्ग स्वर्ग की ओर जाते हैं।
एक बुद्धिमान कहावत हैः “ प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिह्वा के नीचे छुपा हुआ है।” इससे भी बड़ी एक कहावत हैः यदि आपको एक मित्र चाहिए, ईश्वर पर्याप्त है; यदि आपको एक साथी की आवश्यकता है, तो कुरान...........
हमें उपलब्धि का ध्येय और उसके लिए किए जाने वाले कार्य का ज्ञान है परंतु उसे प्राप्त करने वाले का नहीं। आत्मा को ज्ञान है; मस्तिष्क एक वाहन है। आत्मा देखती है; नेत्र एक वाहन है।
मानसिक और स्वाभाविक प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप यदि कोई क्रिया होती है तो वो पाशविक होती है; यदि स्वेच्छा या अंतरात्मा के परिणामस्वरूप क्रिया होती है तो वो आध्यात्मिक या मानवीय होती है।
सत्ताहीनता (अस्तित्व का अभाव) एक भयावह शून्यता है, एक ऐसा अनंत धर्माधता का अर्थ है झूठे और अंधे हठ के लिए आग्रह करना। जो सही है उसके लिए आग्रह करना गुण है, और एक आस्तिक के ऐसे व्यवहार को धर्माधता नहीं कहा जा सकता है।
कभी-कभी सूर्य एक अणु में प्रकट हो जाता है, एक बूंद में बाढ़ और एक वाक्य में एक पुस्तक। ऐसी गहनता के लिए नेत्र (अर्थात दृष्टि) उतने ही आवश्यक है जितने शब्द।
कभी-कभी सूर्य एक अणु में प्रकट हो जाता है, एक बूंद में बाढ़ और एक वाक्य में एक पुस्तक। ऐसी गहनता के लिए नेत्र (अर्थात दृष्टि) उतने ही आवश्यक है जिनते शब्द।
विचार की अभिव्यक्ति के लिए कलम एक स्वर्ण स्रोत है। ये प्रकाश मस्तिष्क से भुजा की ओर उतरता है, और वहां से उंगलियों में और अंततः कलम के द्वारा बाहर आता हैं ।
बहुत सारे नेत्रहीन व्यक्ति मिलकर भी किसी वस्तु का रंग निर्धारित नहीं कर सकते। दो अच्छे नेत्र उनकी आम सहमति को विध्वंसित कर सकते हैं।
प्रत्येक वृक्ष काष्ठ से बनता है। लेकिन वृक्षों में अंतर उनके फल के द्वारा किया जाता है और लोगों में अंतर उनके धर्मपरायणता के द्वारा किया जाता है।
प्रत्येक मस्तिष्क एक ही लोहे से बने भिन्न-भिन्न छुरियों की तरह है उनके बीच का अंतर उनकी धार के कारण होता है।
महान और भव्य राष्ट्रों में खानकाहों (सूफी संतो के आवास) और मकबरों के पत्थर भी सुसज्जित किए जाते हैं। किसी राष्ट्र के सौंदर्य और कला की धारणा को उसके उपासना स्थलों और मकबरों के पत्थरों में देखा जा सकता है।
भौतिक तत्व की कोई धारणा, आत्मज्ञान, भावना या इच्छा नहीं होती। ये मात्र कुछ कानूनों और सिद्धांतों से बनता है (वस्तुओं के बनाने के लिए उपयोग होता है) सबसे लज्जापूर्ण गलती है उसकी गिनती अस्तित्व के तत्व में करना।
सच्चा दर्शन मात्र एक आध्यात्मिक और मानसिक कष्ट (संकट, पीड़ा) है जो तब प्रगट होता हैं जब ईश्वर हमें ज्ञान की खोज के लिए जागृत करता है।
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