अज़ीम मुहक्किक मुफक्किर और आलिम
शेख मुहम्मद फतह उल्लाह गोलन की अजीम खिदमात की बदौलत एक नये दौर का आगाज हो रहा है और हर साहबे नजर आप की तरफ मुतवज्जह होने पर मजबूर रहे, लेकिन इस के बावजूद आप अपनी तारीफ और अपनी तरफ कयादत के इंतेसाब को पसंद नहीं करते। आप की जाये पैदाइश अनातूलिया में वाके एक छोटी सी बस्ती है। जिस में साल के नौ माह मौसम सरमा रहता है। इस बसती का नाम कोरोजक है। जो सोबए अरजरूम के शहर ‘हुसन किला’ का एक नवाही इलाका है। इस बस्ती की आबादी साठ सत्तर घरानों से अधिक नहीं। आप के आबा व अजदा ‘इखलात’ नामी तारीखी गाँव से हिजरत करके यहाँ आये थे। ‘इखलात’ सोबए बतलीस में पहाड़ों के दामन में स्थित एक छोटा सा गाँव था। रसूल अल्लाह (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) की आॅल में बाज हजरात उमोयूं और अबासियों के जुल्मो सितम से बचने के लिए वादी बतलीस के इलाके की तरफ आए और इस इलाके के लोगों के रूहानी पेशवा बन गये, जिसके नतीजे में इस इलाके के तुर्क कबायल के दिलों में इस्लामी रूह जागजीं हो गयी।
मुहम्मद फतह उल्लाह गोलन ने एक ऐसे घराने में आँख खोली, जिस के चारों तरफ में इस्लामी रूह की किरणें फैली हुई थी। आप के वालिद और वालिदा दोनों दीन की गहरी बसीरत के हामिल थे। आप के दादा, ‘शामिल आगा’ इज्जत वकार और दीनी मज़बूती का नमूना थे, जिन का अपने पोते के साथ मज़बूत रूहानी और कल्बी तअल्लुक था। आप के वालिद ‘अमज आफंदी’ इस मुष्किल और बे समर दौर में भी इल्मों अदब, दीनदारी और जिहानतदारी के लिहाज से मारूफ षखसियत थे। वह अपना समय सिर्फ फायदेमंद कामों में सर्फ करते थे। आप की दादी ‘नौशह खानम’ दीनी तशख्खुस और तअल्लुक साथ अल्लाह की वजह से मशहूर थीं। इनकी परहेजगारी की झलक इनके मुशागिल और कामों में वाजेहतौर पर नजर आती थी।
आप की नानी ‘खतीजा खानम’ पाशा खानदान से तअल्लुक रखती थीं और वकार, रहमदिली और अदब एहतराम का पैकर थीं। आपकी वालिदा ‘रफिया खानम’ बस्ती की औरतों की कुरआन करीम पड़ाया करती और रहमदिली, सफकत और नेकी से लगाव की वजह से मशहूर थीं।
शेखमुहम्मद फतह उल्लाह गोलन ने ऐसे अजीम घराने में परवरिश पायी, यही वजह थी कि उन्होंने चार वर्श से भी कम समय में अपनी वालिदा से कुरआन करीम सीखना शुरू कर दिया था और सिर्फ एक माह में कुरआन करीम खत्म कर लिया। आस की वालिदा आधी रात को उठतीं और आप को बेदार कर के कुरआन करीम सिखातीं। जिस घराने में आप ने परवरिश पायी वह इस इलाके के मारूफ उल्मायेंकिराम और सोफियेअजाम की जियारतों जियाफतगाह था। आप के वालिद ‘राम्ज आफंदी’ उल्मा और उनके उठने बैठने को बहुत पसंद फरमाते और उन की ख्वाहिश होती कि रोजाना कम से कम किसी न किसी आलिम की जरूर जियाफत करें, इस तरह मुहम्मद फतह उल्लाह गोलन को बचपन से बड़े-बड़े लोगों के साथ उठने बैठने का मौका मिला और उन्होंने अपने आप को इब्तिदा उमर ही से इल्मो तसौउफ की आमाजगाह में पाया। जिन उल्मायेकराम से आप मुतासिर हुए उन में सबसे नुमाया शखसियत शेखमुहम्मद लुत्फी आलुवारली की थी। आप इन से इस कदर मुतासिर हुए कि उन के मुंह से निकलने वाली बरकात को किसी दूसरे जहान से वारिद होने वाले अल्हामात समझते। आप शेखमुहम्मद लुत्फी आलुवारली की शखसियत से किस कदर मुतासिर हुए इसका अंदाजा इस बाद से भी लगया जा सकता है कि इतने साल गुजर जाने के बावजूद आप हमेशा इनका तजकिरा करते रहते हैं और कहा करते हैं। ‘मैं अपने जज्बात’ एहसासात और बसीरत में बड़ी हदतक उनसे सुनी हुई बातों की एहसानमंद हूँ।
मुहम्मद फतह उल्लाह गोलन अरबी और फारसी जबान सीखने का आरम्भ अपने वालिद माजिद से किया, जो कुतुबबीनी में मुसतगरिक रहते, हर समय चलते फिरते कुरआन करीम की तिलावत करते रहते और अरबी व फारसी के असआर गुन गुनाते रहते। आप के वालिद नबी करीम (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) और सहाबा किराम (रिजवान अल्लाह अलैहिम अजमईन) से इष्क की हद तक मोहब्बत करते थे। वह सहाबा किराम के हालात जिंदगी मुतल्लिक किताबों का इस कसरत से मुतआला करते कि वह कसरते मुतआला की वजह से बिल्कुल बोसीदह हो जातीं। आप के वालिद का एक अहम कारनामा यह था कि उन्होंने नबी करीम (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) और सहाबा किराम (रिजवान अल्लाह अलैहिम अजमईन) की मोहब्बत का बीज अपने बेटे के दिल में बो दिया। मुहम्मद फतह उल्लाह गोलन के वालिद ‘राम्ज आफंदी’ आप के अपनी मीरास में नबी करीम (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) और सहाबा किराम के साथ जो मोहब्बत और तअल्लुक अता किया था, उसे समझे बगैर आप की शखसियत को समझना मुम्किन नहीं। अब यह इंतिहायी दुशवार है कि आप की कोई नजीर देखी जाए या किसी ऐसे शख्स का जिक्र किया जाए जिसे नबी करीम (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) और उन के सहाबा किराम के साथ ऐसा लगाव की जब भी इस की जबान पर उनका तज़किरह आए तो इस की आँखें अश्कबार और दिल बेचैन हो जाए।
इबतिदाई तालीम और नफासती पस मंजर
तकदीर ने मुहम्मद फतह उल्लाह गोलन की तमाम बातनी सलाहियतें को अच्छी तरह उजागर करने के लिए उन्हें मोतदिल और मुतवाज़िन माहौल में परवान चढ़ाया। अगर आप की फितरी सलाहियतें बातनी कूवत, चाक चैबंद तबीयत, जुरात व शुजाअत, उम्दह इंतिजामी लियाकत, तारीख पर गहरी नजर और वलवले से लबरेज़ दिल की सूरत में खूब उजागर हो चुकी थी और उनकी नशोनुमा एक मोहब्बत व शफकत के पैकर और अपने खानदान और रिश्तेदारों से गहरी वाबसतगी के हामिल शख्स की सूरत में हुई, ताहम आप को अपनी इंतिहायी हस्सास तबीयत और अपने अजीजो अकारिब के साथ गहरी वाबस्तगी की वजह से कल्बी तौर पर बहुत सी तक़ालीफ भी उठानी पड़ी, क्योंकि आपके वालिद माजिद अपने दूसरे दोस्तों की बेवफायी और जुल्म का निशाना बने और उन्हें अपने खानदान की नकल मकानी का दुख झेलना पड़ा। थोड़े से समय में अपने भाई, दादा और दादी की वफात की वजह से आप के दिल नातवां पर बेशुमार गम आ पड़े, उन सब मुसाएब और सदमों ने आप के दिल पर गहरा जख्म लगाया। जिस की वजह से ऐन मुम्किन था कि हालात की सितम ज़रीफी आप को एक सूफी दरवेश बना डालती, ताहम कुदरत ने जहाना आप की दीनी मदरसे (जहां से आप ने दीनी तालीम हासिल किया) की तरफ रहनुमायी की, आपको खानकाह (जहां आप ने रूहानी तरबियत पायी) का रास्ता भी दिखाया।
उसके साथ-साथ आप ने रस्मी उलूम और फलसफे पर भी ध्यान दिया। तालीम का जो सिलसिला आप ने अपने वालिद के घर में आरम्भ किया, वह अरजरूम शहरा आकर भी जारी रहा। आप ने जो रूहानी तरबियत सब से पहले अपने घर हासिल की थी, वह मुहम्मद लुतफी आफंदी की खानकाह में भी जारी रही, यही वजह है की आप का रूहानी तरबियत के साथ तअल्लुक कभी टूटा नहीं, बल्कि इस्लामी उलूम की तहसील के पहलू ब पहलू उमर भर जारी रहा। आप ने अपने इलाके के मषहूर उल्मा से उलूम हासिल किए। जिन में सब से नुमाया शखसियत उस्मान बकताश की है, जो अपने समय के चोटी के फुकहा में शामिल होते थे। आपने नहू, बलागत, फिकह, उसूल फिकह और अकायद की किताबें पढ़ीं।
जमाना तालिब इल्मी ही में आप के रसायल नूर और तलबा नूर की तहरीक से शनासायी हो गयी। यह एक हेमागीर अहयायी और तजदीदी तहरीक थी, जिस की बुनयाद हजरत बदी-उल-जमान रखते हैं, बीसवीं सदी के दूसरे रबा में रखी थी।
उमर में पुखतगी, दीनी मदारिस और खानकाहों से अपने हिस्से के उलूम फैज हासिल करने और रसायल नूर जो बजाते खुद एक हेमागीर मुआसिर दीनी मकतब फरीकी हैसियत रखते हैं से आशनायी की वजह से आप तमाम खुदादाद सलाहियतें और काबिलियतें निखर कर सामने आ गयीं।
मजीदबरां आपने इन रस्मी उलूम को पढ़ने और सीखने का सिलसिला जारी रखा जो आप ने सरकारी दरसगाहों से हासिल किए थे, जिस के नतीजे में आप को उन उलूम के उसूल मुबादी के बारे में ठोस मालूमात हासिल हो गयीं। इस के साथ-साथ आप ने न सिर्फ अलबर्ट कामू (Albert Camus) सारतर (Sartre) और मार्कोस (Marcos) आदि जो दी फलासफा की तसानीफात का बगैर मुतआला किया। बल्कि मशरिक व मगरिब के दूसरे फलसफीयाना उफकार के असल सरचश्मों से भी वाकफियत हासिल की। खुलासा यह है कि इन सब अवामिल और हालात ने मिल कर शेखफतह उल्लाह गोलन की शखसियत की तामीर में कलीदी किरदार अदा किया है।
शेख फतह उल्लाह
अभी मुहम्मद फतह उल्लाह की उमर बीस साल भी न हुई थी कि उन्होंने तुर्की के इंतिहायी मशरिक में स्थित अरजरूम शहरको अलविदा कह कर अदरिनह का रूख किया, जो तुर्की का मगरबी दरवाजा समझा जाता है। यहां उन्होंने मस्जिद में ही मुंतकिल कयाम को तरजीह दी और वह बगैर जरूरत के बाहर न निकलते। मस्जिद में रात गुजारने को कोई मुनासिब बंदोबस्त न था।
इस लिए उन्हें मजबूरन मस्जिद के सहन के फर्स पर ही एक कोने में अपना मुखतसर सा बिस्तर बिछाकर रात गुजारनी पड़ती थी।
फिर जब असकरी खिदमात सर अंजाम देने का वक्त आया तो आप ने मामाक और असकंदरून के मकाम पर यह खिदमात सर अंजाम दी और अदरना और अदरना से ‘किरकलाराई’ की तरफ लौट आए। जब आप अदरना में मुकीम थे तो वहां के लोग आप को अरजरूमी शेखके नाम से पुकारते थे। लेकिन जब आप अरजरूम आए तो लोगों ने आप को नई शेखकहाना शुरू कर दिया। ताहम जब आप ने अजमेर में सकूनत एखतियार की तो शेखफतह उल्लाह के नाम आप ने अपने काम का आरम्भ अजमेर की जामा मस्जिद किस्ताना बाजारी से मुल्हिक ‘मदरसा तहफीजुलकुरआन’ से किया और फिर चलते फिरते वायज के तौर पर काम करने लगे। इसलिए आपने मगरिबी अनतूलिया के सारे गिरदोनवाह को दौरा किया और फिर सन् 1970 के आरम्भी में तरबियती कैम्प लगाना शुरू किए। यह वह जमाना था जब आप ने लोगों की इबादत के मुताबिक तरबियत कर के अपने आप को अपने परवरदिगार, दीन, वतन और इंसानियत की खिदमत के लिए वक्फ कर दिया था। इसलिए लोगों की जहन, दिल, और पोशीदह बातिनी एहसासात यहां आकर मुअरिफत के गहरे मुआनी से आषना हुए, गोया लोग मौत की मदहोशी से बेदार हो रहे हों और तवील माजी के बाद उन्हें नये सिरे से उठाया जा रहा हो....आप वह शहसवार थे जिस से कारनामों की आप कई बार मंजरकशी और इसके आला औसाफ का अपने असआर और मकालात में तजकिरह कर चुके थे ... वह शहसवार कि जिस के गम में आप ने मरशिए पढ़े और आँसू बहाये.... ऐसा शहसवार जो तेज दुख भरी नजर और फिक्रमंदो मगजदह दिल का मालिक था, जिस की मंजरकशी आप ने कुछ इस तरह की थी कि वह शदीद थकन के बावजूद अपने स्याही मायल घोड़े पर सवार होकर दामने कोह पर चढ़ रहा होता है। अचानक शिद्दत तकान से उस के घोड़े के दिल की हरकत बंद हो जाती है और वह अपने घोड़े से जमीन पर गिर जाता है लोग उसके गिर्द जमा हो जाते हैं और उस पर कंकड़ियों और पत्थरों का ढेर लगा देते हैं ताकि वह वहां से कभी न उठ सके .... आप एक ऐसे षहसवार थे जिस के सीने में आतिश फिसां उबल रहे थे और उसकी रूह दिल और नफस गमों, दुखों और गहरे जज्बात की वजह से मदहोश हो चुका था गोया वही शहसवार लौट आया है... इस मरतबा इसने फौलाद की तलवार उठा रखी है और न ही कोई पिस्तौल इसके हाथ में है... बल्कि अब तो वह इस तरह आया है कि ईमान हकायक की अलमासी तलवार उसके हाथ में है, इल्म की याकूती तलवार से मसलह है, इष्को मोहब्बत के जमर्रूद, गुरूर फिक्र के मरजान और मातियों से आरास्ता हो और अल्लाह तआला की लामुतनाही बंदगी और अजीजो फिक्र के जज्बात इसके पेश नजर हैं।
12 मार्च 1917 को इस वक्त की हुकूमत पर फौजी दबाव के नतीजे में आप को इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया कि आप एक खुफिया तंजीम के जरीए लोगों के दीनी जज्बात को गलत इस्तेमाल करके मुल्की निजाम की इकतिसादी, सियासी और मआशरती बुनयादों को तबदील करने की कोशिश कर रहे हैं। छः माह तक आप जेल में रहे और इस दौरान आप पर मुकद्दमा चलता रहा, ताहम छः माह के बाद मुआफी के कानून के तहत रिहा हो गये और फिर से अपने फरायज मनसबी अदा करने लगे।
अरबाब एखतियार ने पहले आप को अदरमैयत भेजा फिर मानेसा और उस के बाद अजमेर में बोरनवा की तरफ मुंतकिल कर दिया, जहांपनाह दिसंबर 1980 तक अपने काम में मशगूल रहे।
उस तमाम अरसे में आप मुखतलिफ शहरों में घूमते फिरते और अपने इल्मी, दीनी, मुआषरती, फलसफयाना और फिक्र अंगेज बयानात से लोगों को मुसतफीद करते, नेज़ आप मुखतलिफ इल्मी हल्कों और सेमिनारों का इंयेकाद करते, जिन में नौजवान तबके खूसूसन यूनिवर्सिटियों से फारिगुल तहसील हजरात के जहनों में पैदा होने वाली परेशानकुन सवालात के जवाबात देते। इन मजालिस में बयान करदह जवाबात हर तबके के लोगों के जहनों के तबकों के मुनव्वर करते खुवाह उनका तअल्लुक तलबा से होता या असातजह से, ताजिरों से होता या संअतकारों से, मजदूरों से होता या मुलाजमीन से। इस के नतीजे में इनके गिर्द हर हल्के और तबके से तअल्लुक रखने वाले हजरात का एक गिरोह जमा हो गया, जिस ने आप की हिदायात और तसीहतों की रोशनी में दीनी, इंसानी और कौमी खिदमात सर अंजाम दें। यह छोटी सी जमाअत हर किस्म की दीनवी या मादी मुंफअत को पशेपुश्त डाल कर तुर्की में रायज कवानीन के दायरे में रहते हुए स्कूलों, अकादमियों और ऐसे मराकिज के कयाम में मुंहदिम हो गयी, जो मुखतलिफ यूनिवर्सिटियों में दाखिले के लिए तलबा को तैयार करते थे सोवियत यूनियन की तहलील के बाद इस जमाअत का दायराकार पूरे आलमे इस्लाम में बिलउमूम और वसती एशियायी रियाश्तों में बिलखूसूस फैल गया। जब दूसरे लोग मुसबत खिदमात की बजाय गैर अहम फरोयी मसायल मसलन तुर्की दारूलइस्लाम है या दारूलहरब? की बहसों में उलझे हुए थे उस वक्त शेखफतह उल्लाह ने यह कहकर तुर्की दारूलखिदमत है इस बहस को ही खतम कर दिया। वक्त के साथ-साथ खिदमत का यह जज्बा तकरीबन सारी दुनिया में फैलता चला गया और एक ऐसी नसल तैयार हो गयी जो बिल्कुल खामोशी के साथ लोगों की खिदमत करने लगी। उन्होंने किसी मुआवजे की ख्वाहिश थी और न किसी दुनियावी मंफअत की लालच, बल्कि एखलास में कमी के खौफ से वह किसी रूहानी मरतबे की ख्वाहिश भी न करते। मोहब्बत और सब्र उनका तुर-ए- इम्तियाज था। उन्हें एखतिलाफात में पड़ने की फुरसत न थी। उन्हें बस बाहमी तआवुन और तअमीरी काम धुन लगी रहती। वजह थी कि बुराई का बदला बुराई से न देते थे। जल्द ही उन की खिदमात का दायरा वसीह होकर जिंदगी के दूसरे विभागों तक फैल गया। उन्होंने पहले अखबारात और रसायल निकालना शुरू किया इस के रेडियो स्टेशन और फिर टेलिविजन स्टेशन भी कायम कर लिए, जिस के नतीजे में वह फजले खुदावंदी से लोगों की उम्मीदों का केन्द्र बन गये।
मोहब्बत, इफहाम व तफहीम, नरम मज़ाजी और गुफ्त व शुनीद की बादे सबा
सन् 1990 से शेखफतह उल्लाह बाहमी गुफ्तो शुनीद, तफहीम और तअस्सुब से पाक एक कायदाना तहरीक का आगाज़ किया। धीरे धीरे इस तहरीक की बाजगश्त न सिर्फ तुर्की बल्कि तुर्की से बाहर भी सुनी जाने लगी। इस तहरीक की कामयाबी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शेख मुहम्मद फतह उल्लाह ने पॅाप की दावत पर वेटिकनसिटी में उससे मुलाकात की, जिस में शेखने इस बात पर जोर दिया कि क्योंकि जराय मवासिलात की हैरतअंगेज तरक्की की बदौलत पूरी दुनिया एक आलमी गाँव शक्ल एखतियार कर चुकी है। इस लिए तअस्सुब, एखतलाफात और नफरत पर मबनी कोई भी तहरीक मुस्बत नतायज पर नहीं पहुंच सकती, नेज किसी भी दुनियां की किसी भी हिस्से में रूनूमा होने वाले हादसे या तबदीली का असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है, इसलिए जरूरत है कि कभी अकीदे, फिक्र और फलसफे से तअल्लुक रखने वालों अफराद से फराख दिली का बरताव किया जाए। सोवियत यूनियन की शिकस्त व रेखत और वारिशू पेक्त की नाकामी के बाद आलमी ताकतों ने इस्लाम और मुसलमानों को आसान लक्ष्य समझ कर उनके खिलाफ जंग नागुरेज करार दे दिया, जिस के नतीजे में बाज औकात इंतिहा पसंदी और दहशतगर्दी का भी जहूर हुआ। यह ताकतें जिहाद को बगावत, जंग को इस्लामी, जुल्म को इंसाफ और बुग्ज को मोहब्बत नाकाम देती हैं।
मजकूरा बालासूरत-ए-हाल पेश नजर शेखफतह उल्लाह ने मुआसरे में गुफ्तो शनीदावर रवादारी की दावत का आरंभ किया, क्योंकि बहुत से कुवतें नसली, कौमी, मज़हबी, गिरोही और फिक्री एखतिलाफ को हवा देकर उस मुआसरे का सिराज़ा बिखेरने की सर तोड़ कोशिश कर रही थीं। ताहम आपने उसी पर इकतिफादा न किया बल्कि गुफ्तो शुनीद और रवादारी की इस दावत को तुर्की से बाहर भी कहीं मुम्किन हो सका फैलाने की कोशिश की।
मुवलिफात
बहुत से बलंदपाये लोग नये उफकारो नजरियात के हामिल होते हैं, लेकिन जब वह अपने नजरियात को अमली जामा पहनाने की कोशिश करते हैं तो नाकाम हो जाते हैं। बहुत से हजरात फआल और सरगर्म दायी होते हैं, लेकिन बकदरे जरूरत इल्म और गहरी बसीरत से महरूम होते हैं, कुछ लोग सिर्फ हुकूमत व इकतेदार के मालिक होते हैं या फिर महज हिकमत अमली और सियासी दांवपेच के माहिर इसी तरह बाज हजरात जिंदगी के किसी खास शोबे में इमामत का दर्जा रखते हैं लेकिन अमल के दूसरे मैदानों में उनकी कोई खास खिदमात नहीं होतीं, चूंकि बाज लोग बड़े अच्छे खिलाड़ी या शायर या फनून लतीफा के माहिर या बहुत बड़े आलिम खतीब या फलसफी तो होते हैं, लेकिन मुआसरे में मुसबत तबदीली का बाअस बनने वाली कोई तहरीक नहीं चला पाते।
उसी तरह बाज लोग इकतेसादयात या सियासयात में सफे अव्वल के माहिर या माएनाज असकरी कायद होते हैं। लेकिन दीन और एखतिलाफात के मौजू पर बातचीत करते हुए उनकी जबान गूंगी हो जाती हैं, जबकि दूसरी तरफ बहुत से हजरात दीनी मसायल और रूहानी व एखलाकी उमूर में अपनी तमाम तवानायी खर्च कर डालते हैं, लेकिन इकतिसादी और मआसरती मसायल पर दस्तरस हासिल नहीं होती। खुलासा यह है कि इस दुनिया ने अपनी तवील उम्र में बेशुमार बलंदपाए शखसियत को देखा, लेकिन उन में से हर एक के असरात किसी न किसी खास मैदान में मुन्हसिर हो कर रह गये और अपनी नाफअदियत कामिल तौर पर दूसरों की तरफ मुंतकिल न कर सके, लेकिन उसके मुकाबले मे जब शेखफतह उल्लाह गोलन का ज़िक्र आता है तो न सिर्फ उनकी किताबों, मवायज, बयानात और आडियो और वीडियो खुतबात की तरफ जहन जाता है, बल्कि एक और चीज की तरफ भी ख्याल जाता है जिसे वह ‘जैशुलनूर’ या जुनूदुलहक’ का नाम देते है। यह वह लोग हैं जिन्होंने आप से इस्तेफादा किया और आप के आसार जुमीला में शुमार हुए, नेज आप के मुन्तसबीन की खिदमात को उन इदारों और तनज़ीमों से अलग करके नहीं देखा जा सकता, जिन का जाल उन्होंने दुनिया के कोने-कोने में फैला दिया है।
आप की तहरीक करदह किताबों की तआदाद 60 से अधिक है। जिन का 35 भाशाओं में अनुवाद हो चुका है हम निम्नलिखित उनकी की कुछ महत्वपूर्ण तसानीफ का संक्षेप विवरण देते हैं।
1. उनकी खुतबात, मवायज, बयानात और मजालिस पर मुश्तमिल हजारों की तआदाद में आडिया और वीडियो कैसेट मौजूद हैं।
2. अल असअलतुल हाएरतुलती अफरज हालअसर (आहसए) यह किताब मुखतलिफ अवकात में उन से पूछे गये सवालात के जवाबात पर मुश्तमिल है।
3. अल मवाजिन व अजूआ अली उल तरीक (आहसए) यह किताब मुअर्रिका जिंदगी में अक्लो रूह और तसव्वुफ व हिकमत की पैमानों पर मुश्तमिल है।
4. अल असरूल जैल, अल इंसान फी तैयारूल जमात, नहू अल जन्नतुल मफकूदतुल सफहतुल जहबियातुल जमन, अनफासुल रबीआ और अंदमा नकीम मुअबिद रूहना- यह पाँचों किताबें आप के इन मज़ामीन की मौजू हैं जो सालहासाल तक बाज माहाना और सह माही रिसाले में प्रकाशित होते रहे हैं।
5. अल नूरूल खालिदः मुहम्मद (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) मुफकिरतुल इंसानियत (3 जिल्दें) यह किताब खातिमुल अंबिया रहमतुललिल आलमीन मुहम्मद (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) की सीरत मुतहरा पर आप के बयानात का मौजू है।
6. फी ज़लालुल ईमान (2 जिल्दें) यह किताब ईमान हकायक के बारे में नाकाबले तरदीद दलायल का मौजू है।
7. तलालुल कल्बुल जमरदियत: इस किताब में सर चश्मा इस्लाम से फूटने वाली रूहानी जिंदगी और तसव्वुफ की दुरूस्त इसलाहात को जेर बहस लाया गया है।
8. बराएमुल हकीकत फी जेलुल अलवाल (2 जिल्दें) यह आप के असआर और मकालात का मौजू है।
9. तामलात फी सरतुल फातेहत: उन लेकचर्ज का मौजू है जो आप ने उलूम शरिया के तलबा को दिये थे।
10. अल मंशूर (2 जिल्दें) यह मुखतलिफ मौके पर आप से पूछे गये सवालात के जवाबात और मुखतलिफ मजालिस के दौरान बया करदह अहादीस का मौजू है।
11. अल जिहाद औ आला कलमतुललाह: इस किताब में दौर हाजिर में जिहाद के मौजू के इल्मी व नजरी पहलुओं पर रोशनी डाली गयी है।
12. अल हयात बादलममातः इस किताब में आखिरी जिंदगी के मुखतलिफ पहलुओं पर बातचीत की गयी है।
13. अल कदर फी जूवुल किताबुल सनतः इस किताब में मसलहे तकदीर के मुखतलिफ पहलुओं पर बातचीत की गयी है।
14. महूरूल इरशादः इस किताब में दौर हाजिर में फआल और सरगर्म तरीके से दावत व तबलीग के काम को सर अंजाम देने के तरीके कार पर रोशनी डाली गयी है
15. अल बआदल मिताफीजिकुल वजूद (2 जिल्दें) इस किताब में इल्मी, अक्ली और नकली दलायल के साथ वजूद की हकीकत और रूह, जिन्नात और फरिष्तों की माहियत पर रोशनी डाली गयी है।
16. रेशतुल आज़िफुल मकसूरः यह आप के असआर का मौजू है।
आप की मजकूरह बाला तमाम किताबें तुर्की में सत्तर सत्तर हजार की प्रकाशित हो चुकी हैं नेज आप की बाज कितबों का दूसरी जबानों में भी अनुवाद किया जा चुका है। आप की निम्नलिखित कुतुब को अंग्रेजी जबान में ढाला जा चुका है।
अल नूरूल खालिद, फी जलालुल ईमान, अल हयातुल बआदल ममात, अल सेलतुल हाएरतुलती उफरज हालअसर की पहली जिल्द बराअमुल हकीकत की पहली जिल्द, अलमवाजिन की पहली जिल्द, तलालुल कल्बुल जमरदत और अल जन्नतुल मफकूदत।
निम्नलिखित कुतुब का जर्मन भाशा में अनुवाद हो चुका है।
अल नूरूल खालिद, फी जलालुल ईमान, अल हयात बआदल ममात, अल मवाजीन, अल असलतुल हायरत और नहूल जन्नतुल मफकूदत इन में से हर एक की सिर्फ पहली जिल्द का अनुवाद हुआ है।
आप की किताब फी जलालुल ईमान का अनुवाद बुलगारवी भाशा में। आप के दिवान रेशतुल आज़िफुल मकसूर और अल असअती अफरजहुल असर के मुंतखिब हिस्सों को जापानी जबान में अनुवाद हो चुका है, नेज आप की किताब अल असअलतुल हायरात के पहले हिस्से का अनुवाद रूसी भाशा में भी हो चुका है।
निम्नलिखित कुतुब का अरबी में अनुवाद हो चुका हैः
1. अल कदर फी जूवुल किताबुल सनत
2. अल मवाजीन, अव अजूवा अलल तरीक
3. मुखतारात मन किताबुल असअलतुल हायरतुलती अफरजहा अल असर
4. अल जिहाद अव अलाअ कलमतुल्लाह
जैसे जैसे मुम्किन होगा इंशाअल्लाह आप की कुतुब को भी अरबी ज़बान की कालिब में ढाला जाता रहेगा।
उर्दू ज़बान में निम्नलिखित किताबे अनुवाद हो चुकी हैं
1. तकदीर किताब व सनत की रोशनी में
2. अल मीजान या चिराग ए राह
3. रूह जिहाद और उसकी हकीकत
4. असालीब दावत और मुबल्लिग के औसाफ
5. अजवाय कुरआन दरे फलक व जुदान
6. तखलीक की हकीकत और नजरिया ए इरतिका
7. नूर सरमदी, फखर इंसानियत हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाह अलैह व सल्लम) (दो जिल्दें)
8. रूह के महल की तामीर
9. मुलाहेजात फातिहा
10. जन्नत गुमशुदा की तरफ
11. इस्लाम के बुनियादी अरकान
12. (इस्लाम और दौर हाजिर) जदीद जहनों में पैदा होने वाले सवालात के जवाबात।
13. रूह के नगमें और दिल के गम
आप की बकिया कुतुब का उर्दू में अनुवाद भी इंशाअल्लाह जल्द प्रकाशित हो जाएगा।
चूंकि यह किताब मसाजिद में दिए गये हैं मवायज और तलबा व मुरीदीन के लिए की गयी है खास मजालिस में सवालात के जवाबात का मौजू है जिसे मुसन्निफ के शागिर्दों ने तहरीर किया और रजामंदी और तस्हीह के बाद प्रकाशित किया जा रहा है। इसलिए बाज मकामात पर इस के उसलूब और मजामीन पर खुतबियाना अंदाज की छाप भी नजर आयी है।
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